स्पर्श तुम्हारा प्यारा होता
मधु स्वर कानों में कहती,
मेरा सिर गोदी में रहता
बालों को तुम सहलाती,
तुम थी मेरी रजनीगंधा।
भावों में मैं डूबा रहता
मस्ती सांसों में रहती,
मेरे मन की बातों को
नयनों से तुम पढ़ लेती,
तुम थी मेरी रजनीगंधा।
घर आँगन की थी शोभा
नूपुर सी बजती रहती,
तुम से मेल युगों का मेरा
स्मृतियों में तुम रहती,
तुम थी मेरी रजनीगंधा।
ग्रीष्म में शीतल छाया
घोर शीत में गर्मी देती,
महकाई जीवन की रातें
साँसों में खुशबू भरती,
तुम थी मेरी रजनीगंधा।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 22 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, आभार आपका।
ReplyDeleteजी हृदय स्पर्शी कोमल श्रृंगार।
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