Tuesday, January 17, 2023

मेरी आत्मा में ---

गीता भवन का घाट 
कल-कल बहती गंगा 
किनारे से बंधी नाव 

मैं नाव में बैठा 
खो जाता हूँ 
तुम्हारी यादों में 
न जाने कितनी यादें 
बसी हैं  हमारी यहाँ 

मैं लहरों के संगीत पर 
गुनगुनाता हूँ 
नदी बसती चली जाती हैं 
मेरे होठों पर 

तुम्हारी मृदुल छवि का 
सुधि-सम्मोहन 
भरता चला जाता है 
मेरे मन में 

और तुम्हारी यादें 
बसती चली जाती है 
मेरी आत्मा में --- 





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