हे गुलाबी अधरों वाली
मेरी रूपसि !
तुम सप्त-सुर सजाने कब आओगी।
सावन की भीगी रातों में
अमृत कण बरसाने कब आओगी।
हे शबनमी नेत्रों वाली
मेरी प्रेयसी !
तुम नेह-निमंत्रण देने कब आओगी,
अभिलाषाओं की गलियों में
नयनों का प्यार बरसाने कब आओगी ?
हे मृदु कपोलों वाली
मेरी मानिनी !
तुम प्रणय गीत सुनाने कब आओगी,
मदभरे प्यारे मौसम में
यौवन मदिरा बरसाने कब आओगी ?
हे कोमलांगिनी
मेरी मोहिनी !
तुम पायल की रुनझुन सुनाने कब आओगी।
मेरे सपनों के मधुबन में
रजनीगंधा महकाने कब आओगी ?
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