Saturday, August 21, 2021

रिश्तों की रूबाइयाँ


मैं अब कोई तर्क  नहीं करता 
सब की चुपचाप सुनता रहता 
जीवन  की  साँझ  ढलने लगी  
अब बोल कर भी क्या करता। 

किसी से कुछ नहीं कहना है 
रिश्तों को  केवल  निभाना है 
कुछ चोटें जो दिल  पर लगी 
उन्हें भी चुपचाप ही सहना है। 

जीवन का उद्देश्य बदल गया 
धन-दौलत सब कुछ हो गया 
कहते थे जिसे  हाथ  का मेल 
वही आज सब कुछ हो गया। 

स्वार्थ में बेटे भी रिस्ता भूल गए 
माँ बाप का अहसान भूल गए 
कड़वे बोल इस तरह से बोले 
जिंदगी भर का घाव कर गए।  

बाप बेटे की सुनकर भी जीता है 
दर्द सह कर रिश्ता निभाता है 
क्या करे वो बाप जो कहलाता 
गम खाता और  आँसूं पीता है। 


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