तुम थी मेरी जीवन-साथी
तुम थी जीवन की आशा,
जन्म-जन्म तक साथ रहें
यह थी प्यारी अभिलाषा।
दुःख-सुख दोनों एक भाव
हमने सब संग - संग झेला,
जीवन का आनन्द उठाया
हर मौसम हँस कर झेला।
धुप-छाँव के इस जीवन में
तुमने मेरा साथ निभाया,
चारों पुत्रों को पढ़ा लिखा
तुमने उनको योग्य बनाया।
सुन्दर - सुन्दर बहुऍं आई
उनसे सदा प्रशंसा पाई,
मान - मर्यादा में रह कर
तुमने अपनी धाक जमाई।
चार पोते और तीन पोतियाँ
उनको दिनी स्नेहिल छाया,
नाम सुशीला किया सार्थक
मेरा सदा सम्मान बढ़ाया।
प्यारी अभिलाषा... सुंदर सृजन..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका।
Deleteस्वर्णिम निधि पर अनमोल पंक्तियाँ |
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद आपका।
Deleteहृदय को छू लेने वाले भाव।
ReplyDeleteअति सुन्दर ।
मेरी रचना को मान देने के लिए सादर स्नेह भरा आभार आपका।
Deleteजय श्री कृष्ण अनीता जी। बहुत- बहुत स्वागत आपका।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।
Deleteबस यादें ही रह जाती हैं....ये सुखद यादें जीने का संबल बन जाती हैं।
ReplyDeleteसही कहा आपने मीना जी। अब तो इन सुखद यादों का ही सहारा है।
ReplyDeleteसुन्दर समर्पण भाव ।
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया से ख़ुशी हुई। धन्यवाद अमृता जी।
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