Monday, August 16, 2021

मेरे जीवन की स्वर्णिम निधि

तुम थी मेरी जीवन-साथी 
तुम थी जीवन की आशा,
जन्म-जन्म तक साथ रहें 
यह  थी प्यारी अभिलाषा।  

दुःख-सुख दोनों एक भाव 
हमने सब संग - संग झेला,
जीवन का आनन्द उठाया 
हर मौसम  हँस कर झेला। 

धुप-छाँव के इस जीवन में 
तुमने  मेरा  साथ  निभाया,
चारों  पुत्रों को  पढ़ा लिखा 
तुमने उनको योग्य बनाया। 

सुन्दर - सुन्दर  बहुऍं आई 
उनसे  सदा  प्रशंसा   पाई, 
मान -  मर्यादा में  रह कर 
तुमने अपनी  धाक जमाई। 

चार पोते और तीन पोतियाँ  
उनको दिनी  स्नेहिल छाया, 
नाम सुशीला किया सार्थक 
मेरा  सदा सम्मान  बढ़ाया। 

15 comments:

  1. प्यारी अभिलाषा... सुंदर सृजन..

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका।

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  2. स्वर्णिम निधि पर अनमोल पंक्तियाँ |

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    1. हार्दिक आभार आपका।

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    1. सहृदय धन्यवाद आपका।

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  4. हृदय को छू लेने वाले भाव।
    अति सुन्दर ।

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    1. मेरी रचना को मान देने के लिए सादर स्नेह भरा आभार आपका।

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  5. जय श्री कृष्ण अनीता जी। बहुत- बहुत स्वागत आपका।

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    1. हार्दिक आभार आपका।

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  7. बस यादें ही रह जाती हैं....ये सुखद यादें जीने का संबल बन जाती हैं।

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  8. सही कहा आपने मीना जी। अब तो इन सुखद यादों का ही सहारा है।

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  9. सुन्दर समर्पण भाव ।

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  10. आपकी प्रतिक्रिया से ख़ुशी हुई। धन्यवाद अमृता जी।

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