बादल गरजे बरसे कौनी
बळती चालै जबर घणी
सोनळ धोरां धधके बालू
बळबा लागी कणी-कणी।
राह देखता आँख्यां रेगी
बरसे सूरज लाय घणी,
खेता माईं धान सूकग्यो
कठै लुकग्यौ म्हेरो धणी।
तीसा मरता डांगर मरग्या
ताल - तैलया सुख्या पाणी,
रिणरोही में उड़ै बघुलिया
कद बरसलो अम्बर पाणी।
सावण उतर भादौ लागग्यो
ईन्दर बरस्यो कौनी पाणी
आवो सगळां बिरख लगावा
जद बरसलो अम्बर पाणी।
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