राष्ट्रीय संत शिरोमणि आदरणीय श्री गोविंददेव गिरी जी महाराज के चरणों में सादर नमन करते हुए,
मैं आप सभी पधारे भक्तगणों का स्वागत और हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
चारों तरफ फैली हिमालय की खूबसूरत वादियाँ,
पार्श्व में बहती कलकल करती माँ गंगा की लहरे,
ऋषिमुनियों की यह पावन तपोभूमि
वानप्रस्थ आश्रम जैसा पावन स्थल,
सुन्दर भागवत कथा का आयोजन
व्यासपीठ पर विराजमान अनतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गुरुदेव श्री गोविंदगिरी जी महाराज
और आप जैसे सुधी श्रोताओं के सानिध्य में
श्री हनुमान जी के जीवन पर लिखी पुस्तक
"हनुमान गाथा " का लोकार्पण
गुरुदेव के हाथों से होना,
हनुमान जी महाराज की विशेष कृपा से ही संभव हो सका है।
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पुस्तक लिखने के बाद मैंने पुस्तक की एक पाण्डुलिपि गुरुदेव के पास भेजी थी ।
मैंने गुरुदेव से आशीर्वाद की कामना की। मुझे भावभरा आशीर्वाद गुरुदेव से मिला।
मैंने उसे पुस्तक के पहले पृष्ठ पर मुद्रित करवाया।
अयोध्या में रामलला की मूर्ति की स्थापना के समय गुरुदेव ने आदरणीय मोदी जी को चमच से ----- -----देकर व्रत का समापन करवाया। उसे देख मेरे मन में आया कि क्या गुरुदेव मेरी पुस्तक का भी लोकार्पण करेंगें। क्या यह संभव हो सकेगा।
मेरे मन में यह भाव बारबार आता रहा और मैं हनुमान जी महाराज से प्रार्थना करता रहा। मैंने सभी उनके ऊपर छोड़ दिया। जैसी प्रभु की इच्छा होगी। वो ही करने वाला है और वही करवाने वाला है। मैं क्यों चिंता करूँ।
दो महीने पहले अचानक एक दिन श्री जगदीश जी जाजू का फ़ोन आया कि स्वर्गाश्रम में भागवत कथा का आयोजन कर रहें हैं और आप को चलना है।
मैंने वैसे ही जिज्ञाषावश पूछ लिया -- व्यासपीठ पर कौन है। जैसे ही उन्होंने बताया कि गोविन्दगिरी जी महाराज व्यास पीठ को सुशोभित करेंगें। यह सुनते ही मैंने मन ही मन श्री हनुमान जी महाराज को प्रणाम किया और कहा प्रभु आपने मेरी प्रार्थना सुन ही ली।
मैंने उन्हें तुरंत अपनी स्वीकृति दी और अपने मन की बात भी बता दी। उन्होंने कहा आप चलिए, गुरुदेव से मिल कर बात कर लेंगें।
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आज श्री हनुमान जी महाराज की विशेष कृपा का साक्षात दर्शन आप सभी कर सकते हैं। मेरे जीवन में इससे सुखद पल और क्या हो सकता है ? आज का दिन मेरे जीवन का स्मरणीय दिन बन गया।
आज गुरुदेव ने पुस्तक का विमोचन कर के, न केवल पुस्तक का मान बढ़ाया, अपितु मेरा लिखा भी सार्थक कर दिया। मैं आज धन्य हो गया। मैं गुरुदेव का जितना भी आभार प्रकट करूँ, वो कम ही होगा।
मन में अनेको श्रद्धा भाव उमड़ रहें हैं, लेकिन मैं अपने भावों को शब्दों में, प्रकट नहीं कर पा रहा हूँ। धन्यवाद और आभार शब्द मेरे मन के श्रद्धाभाव के अनुकूल नहीं है, यह शब्द बहुत छोटे हैं।
मैं पुनः गुरुदेव के चरणों में सादर नमन करता हूँ।
इस मौके पर मैं श्री जगदीश जी जाजू और भाई श्री हरिकिशन जी राठी का भी आभार प्रकट करना चाहता हूँ, जिन्होंने श्री हनुमान गाथा पुस्तक के विमोचन करने का, इतना सुन्दर अवसर मुझे प्रदान किया।
आप सभी भक्तगण का धन्यवाद और आभार। आप सभी से सादर अनुरोध, एक बार सभी भक्तजन करतल ध्वनि से गुरुदेव का अभिनन्दन करें।
जय श्री राम।
जय हनुमान।
राम राम।