Saturday, March 16, 2024

आरजू का मौसम अभी गया नहीं है

तुम्हारी यादों में जीवन गुजर रहा है   
इश्क का मौसम अभी गया नहीं है।  

सांसों का टकराना याद आ रहा है
प्यार का मौसम अभी गया नहीं है।   

दिल आज भी तुम्हारे लिए बेकरार है  
आलिंगन का मौसम अभी गया नहीं है। 
   
तुम्हारी चाहत में मन भटक रहा है         
प्रणय का मौसम अभी गया नहीं है। 

आँखें बड़ी हसरत से राह देख रही है 
आरजू का मौसम अभी गया नहीं है। 

Tuesday, March 12, 2024

पाहुन

चलो आज गांव चलते हैं 
मैं ले चलूँगा तुहें 
अपने दोस्त के 
खेत की ढाणी में 
जहाँ मेरे दोस्त की बहु 
खिलायेगी तुम्हें खाना 
पीतल की थाली में परोसेगी 
बाजारी की रोटी और 
काचर फली का साग 
एक कोरा प्याज और 
लहसुन की चटनी 
लोटा भर पानी रखेगी साथ में 
फिर घूंघट की आड़ में 
करेगी तुम से बातें 
खुश हो जाएगा 
मेरा दोस्त 
कि आज उसके घर 
पाहुन आये हैं। 

Saturday, March 9, 2024

ग़ज़ल

 जब से तुम बिछुड़ी हो मेरे जिंदगी से 
मेरी मंजिल का कोई ठौर ही नहीं रहा।

जब से हम दोनों की राहें अलग हुई  
मेरे जीवन में तो मधुमास ही नहीं रहा।  

मैं तो सदा राहों में आँखें बिछाता रहा 
तुम्हें तो राहों में चलना पसंद ही नहीं रहा। 

मैं तो सदा तुम्हारी आँखों में देखता रहा  
मुझे आईना में कभी विश्वाश ही नहीं रहा। 

कहते हैं शहरों में सब कुछ मिलता है    
मगर तुम्हारे जैसा प्यार तो कहीं नहीं रहा।   

Thursday, February 29, 2024

पिता की व्यथा

बेटे का भविष्य संवारने 
बाप सब कुछ करता है, 
जलती धूप ओढ़कर भी 
बेटे को छाया करता है। 

दिन-रात मेहनत करके 
बेटे का पालन करता है,
अपने सुख को भूल कर 
बेटे को खुशियां देता है। 

बेटे को पढ़ा-लिखा कर 
उसको योग्य बनाता है,
घर, जमीन, जायदाद 
सब बेटे को दे देता है। 

मगर बेटा बाप बनते ही 
बाप को भूल जाता है,
अपने कड़वे बोलो से 
बाप को आहत करता है। 

लाचार बाप बेबस होकर 
अपना भाग्य कोसता है, 
बेटे के जुबान खंजर से 
आँखों से अश्रु बहाता है। 




Monday, February 5, 2024

झूठ का बोलबाला

सदा सत्य मैं बोलता, कहता रहता  रोज, 
कितना झूठ बोलना, करता रहता खोज।  

सत्य तो अब रहा नहीं, चला गया है रूठ, 
यदि बोले कोई सत्य तो, मानो उसको झूठ।  

सतयुग के संग सत्य गया, जैसे था मेहमान, 
कलयुग में अब हो रहा,  झूठों का सम्मान। 

जीवन जीना होता कठिन, अगर न होता झूठ 
आपस में होती कलह, सब में पड़ती फुट। 

सत्य जेल में बंद हुवा, झठा करता मौज,  
जो जितना झूठ कहे, उसकी ऊँची औज । 



Saturday, December 16, 2023

गंगा की लहरों में समा गया

जेठ-आषाढ़ की गर्मियों  में
सत्संगी चले आते 
अपने परिवार के संग 
शांति की खोज में
एकांत तपोवन 
मुनि की रेती 
ऋषिकेश में

जहाँ पहाड़ियों की कोख में 
कलकल बहती गंगा 
सरसराती ठंडी हवा 
वृक्षों पर चहकते पंछी 
निः शब्द वातावरण में 
गूंजते प्रभु के गान 

सभी लगाते ध्यान 
करते प्रभु गुणगान 
बना खिचड़ी मिटाते क्षुधा 
रात में सो जाते गंगा किनारे 
आनंद की लहरे लेती हिलोरें 

देखत ही देखते 
सब कुछ बदल गया 
शहरी सभ्यता ने 
उथल-पुथल मचा दी 
सुख-सुविधा की सारी सामग्री 
मनोरंजन का सारा सामान 
जंगल में अमंगल करने 
आ गया 

पहाड़ों की कोख में 
छिपी शांति गायब हो गई 
पंछियों का कलराव
पत्तों की गुफ्तगू 
वृक्षों का प्रेमालाप 
प्रभु गुणगान 
सब कुछ गंगा की लहरों में 
समा गया।