Saturday, January 25, 2014

रूठे को मनाये

 जो भी हम से रूठ गये
या जो हमको छोड़ गये
                   
                      आओ उनको आज मनाऐं
                         बड़े प्यार से गले लगाऐं

    एक बार बाहों में भर कर
पुलकित हो कर कंठ लगाऐं
                   
                     अपने मन का द्वेष हटा कर
                      फिर से उनको पास बैठाऐं

 भूल हुयी जो उसे भुलाऐं
वर्त्तमान को सुखद बनाऐं
                       
                          जीवन का है नहीं भरोसा    
                         आने वाला पल क्या लाए

  बैर भाव को मन से त्यागे
दया-क्षमा को फिर अपनाये
                         
                           अपनत्व का भाव जगा कर
                        फिर से प्यार का दीप जलाऐें।



 [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]












नये साल का नया सवेरा आया

नये साल का नया सवेरा आया
पूरब में सूरज की नयी लौ फूटी।

नये जमाने की हवा क्या चली
इज्जत आबरू सब टंग गयी खूंटी।

कलयुग में सच्चाई की बाते
लगती है वो बिलकुल झूटी।

जो केवल जीया अपने लिए
मौत भी रोई चूड़ियाँ भी टूटी।

जिंदगी उसकी तबाह हो गयी
अरमानो कि जो स्ती लूटी।

मिट्टी की एक प्यारी गुड़िया
गिरी हाथ से और टूटी।





Friday, January 24, 2014

पिट्सबर्ग की एक शाम

                                                                              मैं कमरे में बैठा 
काँच की खिड़की से  
बाहर का
नज़ारा देख रहा हूँ। 

बाहर आसमान 
से गिरती धवल हिमराशि
काश के 
फूलों जैसी लग रही है। 

बीच-बीच में 
 रंग बदलते पेड़ों के
 पत्तों का 
शोर सुनाई पड़ रहा है। 

बगीचे में 
टिमटिमाते जुगनू
  खिड़की से 
बारबार टकरा रहें हैं। 

खरगोश 
रात के अँधेरे में 
 हिम से बचने 
झाड़ियों में छुप रहें हैं। 

दौड़ती सड़कें 
 बर्फ की चादर
ओढ़ कर 
खामोश हो रही है। 

एक चपल गिलहरी 
पेड़ के ऊपर 
अभी भी 
   फुदक रही है। 

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( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


Wednesday, January 22, 2014

अमेरिका में होली

अमेरिका में होली है
लेकिन यह कैसी होली है ? 

न कोई ढोलक 
न कही मजीरे
न कहीं रंगोली 
न चौराहे पर होली है 
फिर कैसी यह होली है ? 

न कही भांग 
न कही ठंडाई
न चंगो की थाप
न कोई अक्षत रोली है 
फिर कैसी यह होली है ? 

न कहीं साली का मजाक 
न समधिन का मिलाप 
न देवर की चुहल बाजी 
न भाभी की ठिठोली है 
फिर कैसी यह होली है ? 

न गुझियों की महक 
न हलवे की खुशबु 
न गालों पर गुलाल
न कोई हमजोली है 
फिर कैसी यह होली है ? 

अमेरिका में होली है
फिर यह कैसी होली है ? 


 [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]






बुढ़ापे का दिन

रोज सुबह
अपने चहरे को
समाचार पत्र से
ढक लेता है बुड्ढ़ा

कईं बार पन्नों को
उलट-पुलट कर
एक-एक अक्षर को
पढ़ता है बुड्ढ़ा

सोने से पहले 
रख देता है समेट कर
महीने के आखिर में कब्बाडी को 
बेचने के लिए बुड्ढ़ा

रात को करवटे बदलता हुवा 
इन्तजार करता है
नयी सुबह के नये समाचार पत्र का 
फिर से बुड्ढ़ा। 






खुशियों की सीमा

तुम्हारे साथ साथ
चलती है मेरी
खुशियों की सीमा

तुम चलते-चलते
जहाँ पहुँच कर
रुक जाती हो
वहीँ पर रुक जाती है
मेरी खुशियों की सीमा

तुम पीछे मुड़ कर
जहाँ तक देखती हो
वहीँ तक होती है
मेरी खुशियों की सीमा

तुमसे शुरू हो कर
तुम्हीं पर ख़त्म होती है
मेरी खुशियों की सीमा।



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

Thursday, January 16, 2014

महानगर की झलक

देश का महानगर
वृहत्तर कोलकाता
जिसकी मुख्य सड़क
सेंट्र्ल ऐवन्यू का
एक नजारा

विवेकानन्द रोड क्रॉसिंग
छोटी-छोटी बच्चियों की
गोद में नंग धडंग बच्चे
भीख मांगते,फटेहाल
भूख से बिलबिलाते
दयनिय भाव से याचना करते

महात्मा गांघी रोड क्रॉसिंग
ताली पीटते,कमर मटकाते
वो लोग जिन्हे सरकार न तो
औरत समझती और न मर्द
आपकी सलामती की दुवाओ
के साथ हाथ फैलाकर याचना करते

बहु बाज़ार क्रॉसिंग
उम्र की ढलती साँझ में
टूटी हुयी,सताई हुयी वो औरते
जिन्हे चबा कर पिक की तरह
सड़क पर थूक दिया गया है
कात्तर स्वर में सहायता की याचना करती

चाँदनी चौक क्रॉसिंग
लकड़ी के पटरों पर घिसटते
लूले,लंगड़े,अंधे,अपाहिज
छालों और घावों का दर्द सहते
भूख से बिलखते सहायता के लिए
अल्लाह के नाम पर याचना करते

यह है मेरे प्रगतिशील भारत के
महानगर की एक तस्वीर
जिसे आप और हम
रोज सुबह-शाम
आते जाते देखते हैं
और बस देखते ही रहते हैं।


 [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]