Friday, February 20, 2015

आधे-अधूरे चले जाना


उस दिन तुम
मुझे बिना बताये ही
समस्त बंधनों से मुक्त हो
उड़ चली अनंत आकाश में

तुम्हारा इस तरह 
अचानक चले जाना 
मुझे बहुत अखरा मन में

तुम अपना
सारा सामान भी तो 
मेरे पास ही छोड़ गई

बिना कुछ साथ लिए 
खाली हाथ ही 
चली गई 

तुम्हारा इस तरह 
आधे-अधूरे चले जाना  
मुझे अच्छा नहीं लगा 

तुम्हारे विच्छोह के 
दर्द को सहना जिंदगी में 
सबसे बड़ा भार लगा

आज जब भी
तुम्हारी कोई चीज
नजरों के सामने आती है
कुरेद देती है विरह के जख्मों को 

नहीं सोचा था 
एक दिन ऐसा भी आएगा 
जब नैन तरस जायेंगे 
तुम्हारी एक झलक पाने को।  


                                              [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]

Wednesday, February 11, 2015

विरह का दर्द

विरह की अगन में दहक रही है जिंदगी
कंपित लौ सा धुँआ दे रही अब जिंदगी।

विरह के आघात को सह रही है जिंदगी
रातों के नेह स्पर्श से दूर है अब जिंदगी।

 विरह के दुःखों से कंटक भरी है जिंदगी
अधरों की मुस्कान खो चली अब जिंदगी।

विरह की वेदना से फ़साना बनी हैं जिंदगी
  टूटी हुई पतवार सी लगती है अब जिंदगी।

विरह के दर्दों को जिए जा रही है जिंदगी    
पर  कटे  पंछी सी लगती है अब  जिंदगी।   

 विरह के विशाद में घुल रही अब जिंदगी
  बिन पानी मीन सी तड़फ रही है जिंदगी।



[ यह कविता 'कुछ अनकही ***"में प्रकाशित हो गई है ]








Tuesday, February 10, 2015

आज भी तुम्हें पुकारती है


वो गीता
जिसे तुम रोज पढ़ा करती थी
अपने ममता भरे स्वर में
आज भी तुम्हे पुकारती है

वो धौली
जिसे तुम रोज सुबह
अपने हाथ से रोटी खिलाती थी
आज भी दरवाजे पर रंभाती है

वो तुलसी
जहाँ तुम रोज घी का
दीपक जलाया करती थी
आज भी तुम्हारी राह टेरती है

वो बिंदिया
जिसे तुम रोज दर्पण के 
किनारे लगाती थी 
आज भी तुम्हारी राह देखती है

वो दरवाजा
जहाँ तुम शाम को बैठती थी
आज भी तरसती आँखों से
तुम्हारी राह देखता है 

वो लाडली 
पोती आयशा जिसे तुम 
रोज गोद खिलाया करती थी
आज भी तुम्हें ढूंढती है।



                                               [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]




Sunday, February 8, 2015

मेरी जिंदगी में


सूरज की रोशनी बन
तुम जगमगाई
मेरी जिंदगी में

चाँद की चांदनी बन
तुम मुस्कराई
मेरी जिंदगी में

फूलों का सौरभ बन
तुम महकी
मेरी जिंदगी में

सावन की बरखा बन
तुम बरसी
मेरी जिंदगी में

प्यार का गीत गुनगुना
तुम तराना बनी
मेरी जिंदगी में

एक बार लौट आओ
फिर से सारी खुशियाँ
भरने मेरी जिंदगी में।



[ यह कविता 'कुछ अनकही ***"में प्रकाशित हो गई है ]




Thursday, February 5, 2015

तुम्हारे जाने के बाद











जीवन के सुख-चैन लूट गए, तुम्हारे जाने के बाद।
दिल के अरमान बिखर गए, तुम्हारे जाने के बाद।।

   जीवन में उदासी छा गई, तुम्हारे जाने के बाद।
    जिंदगी गम में बदल गई, तुम्हारे जाने के बाद।।

विरह-वेदना सताने लगी, तुम्हारे जाने के बाद।
जुदाई मुझे तड़फाने लगी,तुम्हारे जाने के बाद।।

कुहासा छा गया राहों में, तुम्हारे जाने के बाद।
 खुशियों की शाम ढ़ल  गई, तुम्हारे जाने के बाद।। 
         
 केवल  यादें  रह गई, तुम्हारे जाने के बाद।  
 सुहानी  रातें रुठ गई, तुम्हारे जाने के बाद।।               
                                                                            
उमंग भरा दिल टूट गया,  तुम्हारे जाने के बाद
    सुहाना सपना बिखर गया, तुम्हारे जाने के बाद।। 



                                            [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]