Thursday, July 25, 2013

तुम्हे मुस्कराते देखा होगा।

तुम्हारा साथ है तभी तक यह जान है
तुम्हारे बिना मौसमे-बहार का भी क्या होगा।

तुम्हारे जाने से लगा तनहा जीना आसन नहीं
तुम लौट कर आवोगी तभी मौसमे-बहार होगा।

मेरे कानो के पास से जब भी गुजरती है हवाए
कहती है मत धबराओ तुम्हारा प्यार खरा होगा।

तुम्हारे जाने से वीरान है ये आँखे
तुम लौट कर आओगी तभी मधुमास होगा।

बीत गए कितने ही दिन तुमको गए हुए
उठती है एक हूक दिल में कुछ खलता होगा।

मुझे पता है बादल भी यू ही नहीं बरसता
जरुर किसी की याद में आँसू बहा रहा होगा।

महीनो बाद आज तुम लौट कर आयी हो
तुम्हे देख घर का कोना-कोना महका होगा।

हँस पड़े बगिया के फुल जैसे ही तुम घर में आई
चराग भी खुद जल उठै, तुम्हे मुस्कराते देखा होगा।


 [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]


Tuesday, July 16, 2013

गाँव रो पीपळ (राजस्थानी कविता )

गँवाई कुवै के
जिवणे पासै हो पीपंळ
अर पीपंळ रे पसवाड़े हो
सती दादी रो देवरो
गांव री लुगायां दैवरो धौकती


गौर-ईशर री जद सवारी
कूवै पर आंवती जणा गाँव री
छोरया-छापरयां पींपळ रै हैठे
भैळी  हुय र गीत गांवती


नुवों ब्याव हुयोड़ो जोड़ो
सती दादी रै गठजोड़े री
जात देवण आंवतो जणा
पीपळ री छियां आशीष देवंती


बैसाख रे महीना में
भोरान-भोर गाँव री लुगायाँ
पीपळ सींचण ने आंवती
गट्टा पर बैठ"र कांण्या कैंवती


टाबरिया रमता पीपळ री
छियाँ मांय दड़ी र गेडियो
लगाता लंम्बा-लंबा टौरा
जेठ-असाढ री गरमी रे मायं


पीपऴ रे  निचे हुवंती
नारा-गाड्या री दौड़ अर
देखतो पुरो गाँव गौर के
मगरीया मांय

पण आज गँवाई कुवै रे पासै
कौनी रियो पीपंळ
पण जाका देख्यो ही कौनी पीपंळ
बाने कियां याद आवैगी ऐ बातां

आशीष रै ओळावै
पींपळ देग्यौ आपरी
समूची ऊमर गाँव नै अर
छोड़ग्यो मीठी-मीठी बातां।


[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]



Monday, July 15, 2013

आत्मसंतुष्टी,

मैंने अपनी 
पोती से पूछा
कहाँ से आ रही हो ?

मैकडोनाल्ड से आ रही हूँ
पिछले सप्ताह मेरे जन्म दिन पर
कुछ फ्रेंड्स नहीं आ सके थे
उनको आज पार्टी दी थी।

अब क्या करोगी ?
मैंने फिर पूछा-
बस कुछ नहीं आज टी. वी.
पर एक नया सिरियल आ रहा है 
मिस्टर पम्मी प्यारेलाल
उसी को देखूंगी। 

मैंने कहा -
तुम्हें राजस्थानी भाषा का शौक है
इसलिए मैंने कुछ कवितायें 
राजस्थानी में लिखी है 
तुम पढ़ना।

दादाजी आपको तो पता है
इस साल बोर्ड एग्जाम है
कितनी मेहनत करनी पड़ रही है
एक मिनट का समय नहीं है।

मैं सोचने लगा
क्या इसको कभी समय मिलेगा ?
क्या वो कभी पढ़ पाएगी 
मेरी लिखी कविताऐ ?

अभी बोर्ड का एग्जाम है
फिर कॉलेज की पढ़ाई है
आगे चल कर सर्विस करनी है 
एक दिन नयी गृहस्थी सम्भालनी है।

अपनी आत्मसंतुष्टी के लिए
मैं एक गहरी सांस लेता हूँ और 
सोचता हूँ शायद कभी मेरी उम्र में।

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Friday, July 12, 2013

ओळाव (राजस्थानी कविता)

दुनिया की दादागिरी रो
ठेको ले राख्यो है
अमेरीका

शांती'र नाम दुनिया में
करे जुद्ध,लड़ाव देश के लोगा ने
एक दूजा स्यूं अमेरिका

भेजे आपरी फौजा
देव नुवां-नुवां हथियार
शुरू करे अंतहीन जुद्ध अमेरिका

आभै में कांवळा दाईं
उडावै हवाई जहाज
ठोड-ठोड फैंक ब़म अमेरिका

बिना मिनखा
चाळबाळा हवाई जहाज
डरोण बरपाव कहर

आग री च्यांरा कानी उठे
लपटा, धुंवारा उठै गुब्बार
मिट ज्यावै गांव र शहर

चीखां अर चितकारा सुणीजे चौफेर
दिखै छत-बिछत हुयोड़ी ळाशा
दिन रात हुवै धमाका

चिरळी मारै घरां में
सुत्योड़ा टाबरिया
सुण र बामा रा धमाका

बरसा न बरस चाळै
शांती "र नावं पर
अशांती रो जुद्ध

मन में बैठ्या दरिंदै ने तो
कोई न कोई ओळाव चाईजै
करनै दुनिया में जुद्ध।




[ यह कविता "एक नया सफर" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]





Wednesday, July 10, 2013

दादी रो टुंणो (राजस्थानी कविता)

दादी जांणती
टुंणो  करणो
गांव में आँधी आंवती
जणा रोक देवंती आंधी ने
कर देती टुंणो

टाबरिया धूळरा बतूळा
देखता र भागता
दादी कनै अर केंवता
दादी आँधी आवै है
बेगो करो टुंणो

दादी ल्याती बुवारी
अर ऊपर मैळती भाटो
राळती बाजरी का आखा
सींच देती कळस्या  स्यूं पाणी
कर देती टुंणो

टाबरियां रो
बिसवास हो दादी
अर दादी रो बीसवास हो
आपरो टुंणो

जे कदास 
आँधी आ ज्याती तो
दादी केती बाळणजोगी पेळी
बड़गी कांकड़ में,नहीं जण"स
कर देतो जापतो म्हारो टुंणो।



[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]


Sunday, July 7, 2013

बळजी (राजस्थानी कविता)

बळजी
साँचो माणस हो
माँ दिशावर गयी जणा
बळजी ने संभळाय'र गयी
आपरो सगळो गैणो-गाँठो
अर हिदायत दीनी  -
बळजी नींग राखिज्ये।

बळजी गैण री पोटळी
थाम तो लीनी
पण रातां री नींद उड़गी
माँ पाछी आई जणा बळजी
गैण री पोटळी पकड़ाय'र बोल्यो-
"सेठाणी जी आज सुख री नींद सोंवुला"।

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बळजी
भळो माणस हो
गाँव मांय सगळा रे
सुख-दुःख मांय आडो आंवतो
आधी रात ने जे कोई बतळा लेंवतो
बळजी पग जुती कोनी घालतो

आराम-बीमार पड्या
बळजी घरां जाय झाड़ो लगावंतो
गाँव रा लोग कैवता बळजी रो
झाड़ो पळै।

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बळजी
स्याणो माणस हो
ब्याव-सावा मांय
ओसर-मोसर मांय
सगळे गाँव री
मिठाई बळजी ही बणावतो

पण मजाळ जे
कदैई बळजी कोई स्यूं
पांच रिपिया भी बणाइरा मांग्या हुवै
कोई देवै तो बळजी राजी
अर कोई नी देवै तो बळजी राजी

बळजी मीनख हो
मीनख कांई
जबर मीनख हो।

Friday, July 5, 2013

खेत रै गेळै मांय (राजस्थानी कविता)

म्हनें ओज्यूँ याद आवै
खेत जावंता गेळै मांय
थूं चाळै ही सामै -सामै
अर म्हैं चाळ हो थारै लैर - लैर

गेळै मांय
थारो ओढणो झाड़का रे
काँटा मांय उलझग्यो

तू देख्यो कै म्हैं
थारो पल्लो पकड्यो हूँ
तू झट बोल पड़ी--

हे रामजी!
थे तो रस्ते मायं ही
नीचळा कौनी रैवो
अबार उगड़ ज्यावंतो माथो

म्हैं अचंम्भो कर
थारो मुंडो देखबा लागग्यो

इतना मांय तू बोल पड़ी --
मरज्याणा - बाळणजोगा
ऐ झाड़का थारै दांई हुग्या।



Thursday, July 4, 2013

चौमासो (राजस्थानी कविता)

जका चल्या गया छोड़ र गाँव
बसग्या टाबरा ने ळैर परदेश
                        बानै कांई लेणो है बिरखा स्यूं
                       अर कांई लेणो है चौमासा स्यूं।


दीसावरा में चाळै चौखा धंधा
एयरकण्डीशन में बैठ्या करे मौज
                      देश में बिरखा बरसे जे नहीं बरसे
                               बांको मन तो कदै नी तरसे।


बाजार में मिल ज्यावै सगळी सरा
काकड़ी,मतीरा,काचरा र फल्या
                         चोखा-चोखा छांट-छांट ले आवै
                     जणा बानै क्यू चौमासो याद आवै।


फरक पड़े है गाँव में रेव जका कै
नहीं बरस्या काळ पड़तो ही दिखै 
                   पड्या काळ मुंडै पर फेफी आज्यावै
                      डांगर-ढोर भूखा मरता मर ज्यावै।


ना होली दियाळी लापसी बणै
ना टाबरियां ने सीटा पौली मिलै
                      घरा में रोट्या का फोड़ा पड़ ज्यावै
                      बाबो बिना दुवाई के ही मर ज्यावै।



 [  यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गयी है।  ]




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