Friday, July 5, 2013

खेत रै गेळै मांय (राजस्थानी कविता)

म्हनें ओज्यूँ याद आवै
खेत जावंता गेळै मांय
थूं चाळै ही सामै -सामै
अर म्हैं चाळ हो थारै लैर - लैर

गेळै मांय
थारो ओढणो झाड़का रे
काँटा मांय उलझग्यो

तू देख्यो कै म्हैं
थारो पल्लो पकड्यो हूँ
तू झट बोल पड़ी--

हे रामजी!
थे तो रस्ते मायं ही
नीचळा कौनी रैवो
अबार उगड़ ज्यावंतो माथो

म्हैं अचंम्भो कर
थारो मुंडो देखबा लागग्यो

इतना मांय तू बोल पड़ी --
मरज्याणा - बाळणजोगा
ऐ झाड़का थारै दांई हुग्या।



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