Friday, November 30, 2012

आयशा



आयशा आज आई आँगन में   
ले अनन्त खुशियाँ जीवन में 
 किलकारी से गूंजा हर कोना    
  चाँद सा मुखड़ा बड़ा सलोना    

   नन्ही परी जब से घर आई 
खुशियाँ दो परिवारो में छाई 
गुनगुन करके वो करती बात   
 फुल सी आयशा बनी सौगात    

नानीजी की गोदी जन्नत बनी  
      नानाजी की मुस्कान खिली      
रुनझुन दादाजी के मन में बसी      
नन्ही कली जैसी पलके खुली   

दादीजी के आँचल में सिमटेगी     
लोरियों की तान में खो जायेगी     
मम्मी- पापा की वो होगी प्यारी     
सब के सपनों की राजदुलारी   

मन की खुशियों को कैसे छुपाऊँ       
 कैसे आयशा  को गोद खिलाऊँ      
गोद खिलाने की चाह बहुत है   
      लेकिन हम तो दूर बहुत है    

सदा प्रभु का आशीर्वाद रहेगा     
खुशियों से भरा जीवन रहेगा   
    चाँद सितारे उम्र लिखेंगे
    गुलसन में अब फुल खिलेंगे।    

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Wednesday, November 21, 2012

मन में बसी है





जीवन के
पैसठवे बसंत में
गांव की यादें आज भी
ताजा  है

पचास साल हो गए
गाँव को छोड़े
लेकिन कल की 
बात लगती है

याद आता है
आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का
उछल-कूद मचाना

सज-धज कर पनिहारिनों का
पानी भरने जाना और
पायल का बजना

गडरिये का अलगोजा और
गायों के गले में बन्धी
घंटियों का बजना

सावन की रिमझिम  में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना

गर्मियों में घर आये
मेहमान को छाछ -राबड़ी
पिलाना

गाँव की अनेकों यादें
मन में बसी हैं
मुश्किल है उन्हें भुलाना।



  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]




Friday, November 16, 2012

आनन्द और उत्साह





मैं नहीं जानती कि
तुम्हे सुबह के पेपर में
कौन सी खबर चाहिए, 
लेकिन मै जानती हूँ कि
तुम्हे सुबह की चाय में
अदरक जरुर चाहिए।

मैं नहीं जानती कि
देश में बढ़ते घोटाले
कैसे रोके जाने चाहिए,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
स्कूल से आने के बाद
बच्चो को क्या चाहिए।

मैं नहीं जानती कि
आरक्षण निति से गरीबो को
कितना लाभ मिलता है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
तुम्हारी माँ को मेरे हाथ का
खाना खाकर आनंद मिलता है।

मैं नहीं जानती कि
बढ़ते राजकोषिये घाटे को
कैसे कम किया जा सकता है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
घर के बजट को कैसे संतुलित
किया जा सकता है।

मैं नही जानती कि अलकायदा 
और तालिबान की धमकी से
अमेरिका की नींद उड़ जाती है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि तुम्हारे
बालो में अंगुलियाँ फेरने से
तुम्हे नींद आ जाती है।



  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]















Friday, November 2, 2012

सब फलों का राजा आम


अनेक किस्म के होते आम
लंगड़ा  और बनारसी आम
तोतापुरी और हापुस आम
मद्रासी और सेंदुरिया आम। 

                            रस से भरे दशहरी आम 
                           महके बहुत सफेदा आम 
                             आमों  के है हजारों नाम 
                            कौन नहीं जो खाता आम 

कच्चा  सबसे पहले आता
चटनी और अचार बनाता
खुशबू  इनकी प्यारी होती
इनकी शान  निराली होती।

                            चूस-चूस कर  खाते आम
                            शेक बना कर पीते  आम
                            बड़ा स्वादिस्ट होता आम
                            सबको प्यारा लगता आम।

गर्मियों में आता है आम
मीठा और रसीला  आम
हर दिल को भाता  आम
सब फलों का राजा आम।