जीवन के
पैसठवे बसंत में
गांव की यादें आज भी
ताजा है
पचास साल हो गए
गाँव को छोड़े
लेकिन कल की
बात लगती है
याद आता है
आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का
उछल-कूद मचाना
सज-धज कर पनिहारिनों का
पानी भरने जाना और
पायल का बजना
गडरिये का अलगोजा और
गायों के गले में बन्धी
घंटियों का बजना
सावन की रिमझिम में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना
गर्मियों में घर आये
मेहमान को छाछ -राबड़ी
पिलाना
गाँव की अनेकों यादें
मन में बसी हैं
मुश्किल है उन्हें भुलाना।
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
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