Wednesday, November 21, 2012

मन में बसी है





जीवन के
पैसठवे बसंत में
गांव की यादें आज भी
ताजा  है

पचास साल हो गए
गाँव को छोड़े
लेकिन कल की 
बात लगती है

याद आता है
आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का
उछल-कूद मचाना

सज-धज कर पनिहारिनों का
पानी भरने जाना और
पायल का बजना

गडरिये का अलगोजा और
गायों के गले में बन्धी
घंटियों का बजना

सावन की रिमझिम  में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना

गर्मियों में घर आये
मेहमान को छाछ -राबड़ी
पिलाना

गाँव की अनेकों यादें
मन में बसी हैं
मुश्किल है उन्हें भुलाना।



  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]




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