Monday, September 21, 2009

भ्रस्टाचार


हिमालय के जंगलों में
घूमते हुए मुझे
एक दिब्य आत्मा
के दर्शन हुए

मैंने उन्हें
प्रणाम करके कहा-
प्रभु !
आप तो साक्षात
भगवान बुद्ध
लग रहे है

क्या आप मेरी
 एक प्रार्थना
 सुनेंगे  ?

मेरे इस  देश को
भ्रष्टाचार से मुक्त
 करेंगे ?

दिब्य आत्मा
 ने कहा-
वत्सः!
 
 
                                                                             जाओ      
तुम मुझे
एक मुट्ठी चावल
 उस घर से ला दो
जिसने आज तक
सच्चाई का जीवन जिया हो

मै इस देश
को सदा-सदा के लिए
भ्रस्टाचार से मुक्त  कर दूंगा

काश !
 मै ऐसे किसी ऐसे
एक भी घर को
 ढूंढ़ पाता
और
अपने देश को
भ्रस्टाचार से मुक्त करा पाता।


कोलकत्ता
२१  सितम्बर, २००९

Thursday, September 17, 2009

स्वार्थी दुनियां


पूर्वी बंगाल* में
 डाकुओं द्वारा
दादी के पति की
ह्त्या कर दी गई

बाल्य अवस्था में ही
दादी विधवा हो कर
गांव लौट आई

दादी के पास
धन की कोई कमी
नहीं थी

ढेर सारा
सोना-चाँदी लेकर
दादी आई थी

देवर
बेटे की शादी के लिए
दादी के पास गहने
 माँगने गया

तराजू का पलड़ा
सोने-चांदी के गहनों से
भर गया

तब देवर ने कहा 
तुम माँ हो और
मैं तुम्हारा बेटा हूँ

क्यों तोल रही हो 
आजीवन सेवा करूंगा
मैं वचन देता हूँ 

दादी ने
सब कुछ समेट कर
देवर को दे दिया

लेकिन समय के साथ 
कथित बेटे ने माँ को
भुला दिया

अस्सी की उम्र में 
आज दादी रास्ते से
गोबर उठा उपले बनाती है

आस-पड़ोस से
छाछ मांग कर थोड़ी 
राबड़ी बनाती है

दो कच्ची पक्की
रोटी बना कर अपना
 पेट भरती है

दादी आज
आँखों में आँसूं भर
स्वार्थी दुनिया को
कोसती है

जिसे मैंने
अपना सब कुछ
निकाल कर दे दिया

उसने मुझे
दो रोटी के लिए
भिखारी बना दिया।



* पूर्वी बंगाल विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान और स्वतंत्र होने के बाद बांग्ला देश कहलाया।









कोलकत्ता
१७ सितम्बर, २००९

Saturday, September 12, 2009

गाँव का विकास


मेरे गाँव में कभी दूध की नदियाँ बहती थी
आज वहाँ शराब की नदियाँ बहती है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है!

मेरे गाँव में कभी निर्विरोध चुनाव होते थे
आज पूरे विरोध के साथ चुनाव होते हैं
मेरे गाँव का विकास हो रहा है 

मेरा गाँव कभी भाईचारे की मिशाल होता था
आज भाईचारा नफरत की गंध में खो रहा है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है !

मेरे गाँव के लोग कभी सुख की नींद सोते थे
आज सबकी नींद हराम हो गई है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है !

मेरे गाँव की गोरियाँ कभी चुनरी-लहंगा पहनती थी
आज राधा, सीता, गीता सब जींस पहनती हैं 
मेरे गाँव का विकास हो रहा है !

पनघट पर कभी छम-छम पायल बजती थी
आज गांव का पनघट सूना पड़ा है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है !

गुवाड़ में कभी कुस्ती और मुकदर के खेल होते थे
आज वहां सियासत के अखाड़े जमते  हैं
मेरे गांव का विकास हो रहा हैं !


कोलकत्ता
१२ सितम्बर, २००९

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Thursday, September 10, 2009

बर्ड फ्लू



मुर्गी बोली
सुनो प्रिये
बर्ड फ्लू
आ गया है
इंसान अब
हमें नही
खायेगा 

अब हम
थोड़े नहीं
बहुत साल

आराम से जियेंगे

मुर्गा बोला
तुम भूल रही हो
तुम जानवरों के नहीं 
इन्सान के पल्ले
पड़ी हो 

अरे  !
इन्सान तो
अपनों को भी
नहीं छोड़ते
तुमको क्या छोडेंगे

पहले तो
दस बीस को
मारते थे

अब तो
हजारों को
एक साथ मारेंगे।



कोलकत्ता
९ सितम्बर, २००९

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Tuesday, September 8, 2009

दादीजी की कहानी

दादी ने बच्चों से कहा-
बच्चों आओ मैं तुम्हें 
एक कहानी सुनाऊँ

बड़ा राहुल बोला-
दादीजी अभी मैं
होमवर्क कर रहा हूँ
बाद में सुनूँगा

मँझली पूजा बोली-
दादीजी अभी मैं
टी.वी देख रही हूँ
बाद में सुनूंगी

छोटी राधिका बोली-
दादीजी अभी मैं
फ्रेंड से बात कर रही हूँ
बाद में सुनूंगी

सबसे छोटा कृष्णा बोला-
दादीजी अभी मैं
कंप्यूटर पर गेम खेल रहा हूँ
बाद में सुनूँगा

दादी जी ने रूठते हुए कहा -
अब मैं तुम्हें कभी कहानी
नही सुनाऊँगी

सभी बच्चे
एक साथ बोले -
हम इंटरनेट पर ही सुन लेंगे।




कोलकत्ता
८ सितम्बर, २००९

Sunday, September 6, 2009

कबूतर को दाना






माँ अपने
कमरे में
रोज रात को
एक कटोरा भर कर
दाना रखती 


मुहें अंधेरे
उठ कर
छत पर
जाकर
कबूतरों को
दाना डाल आती

कभी
आराम-बीमार
हो जाती
तो हमें कहती
जाओ कबूतरों
को दाना डाल आओ

वो कौन से
तुम से माँगने आयेंगे
बेचारे बिन झोली के
फ़कीर हैं 

माँ के
जाने के बाद
ये काम
माँ की बहू
कर रही है

रोज सवेरे
उठ कर
छत पर जाकर
कबूतरों को दाना 
डाल आती है

कहती है
बेचारे बिन झोली के
फ़कीर है

और यही 
हमारी संस्कृति की
लकीर है।  


      कोलकत्ता
 ६ सितम्बर,२००९

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
  

Friday, September 4, 2009

बिल्ली को बुखार




पूसी बिल्ली को हो चढ़ा बुखार
टेम्परेचर हो गया एक सौ चार

भोलू डॉक्टर को उसे दिखाया
उसने पूसी को वायरल बताया

झट एक इंजेक्शन लगवाया
फ़िर थोड़ा परहेज़ बताया

नहीं दौड़ोगी चूहों के पीछे 
नही खाओगी  दूध मलाई  

सोंठ डालकर काढा पीकर
तुम सोओगी ओढ़ रजाई

अभी करोगी तुम आराम 
 पूसी को हो गया जुकाम।





कोलकत्ता
४ दिसम्बर, २००९


(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित  है )

Wednesday, September 2, 2009

कोल्हु का बैल


मेरे गांव में
कालू कुम्हार के
घर एक बैल है 

बैल सुबह से
 शाम तक कोल्हू
  चलाता है

 वह तब तक
चलाता रहेगा
जब तक वो जिन्दा रहेगा

शहर में
इस बैल का
प्रतिनिधित्व मैं करता हूँ 

सुबह से शाम तक
कोल्हू का बैल
बना घूमता रहता हूँ

और
  तब तक
   घूमता रहूँगा
       जब तक ......  .I