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Sunday, August 30, 2009

उदगम का खोना

अस्पताल में तुम
रूग्ण-बीमार
खाट पर सोई हुयी

प्रतीक्षारत 
अपनी अनन्त
यात्रा के लिए

तुम्हे पता है कि 
तुम अब चंद घंटो की 
मेहमान हो

तब भी तुम्हे
मेरी ही चिंता रही
मैं खड़ी खड़ी थक जाउंगी 

महा प्रयाण के
समय तक तुम मेरा हाथ 
अपने हाथ में थामे रही

कितना स्नेह था
ममत्व था माँ
तुम्हारे अन्दर

आज तुम्हे
चले जाना है
अपनी अनन्त यात्रा पर

सदा-सदा के लिए
सब कुछ यहीं
छोड़ कर

डबडबा रही है
मेरी आँखे
कलेजे में हुक सी
उठ रही है 

मुझे दुःख है
आज मेरे 
उदगम के खोने का। 


लेखिका: सुशीला कांकाणी
दिनांक: १७.०४.२००६