अस्पताल में तुम
रूग्ण-बीमार
रूग्ण-बीमार
प्रतीक्षारत
अपनी अनन्त
यात्रा के लिए
तुम्हे पता है कि
तुम अब चंद घंटो की
मेहमान हो
तब भी तुम्हे
मेरी ही चिंता रही
मैं खड़ी खड़ी थक जाउंगी
मेरी ही चिंता रही
मैं खड़ी खड़ी थक जाउंगी
महा प्रयाण के
समय तक तुम मेरा हाथ
अपने हाथ में थामे रहीकितना स्नेह था
ममत्व था माँ
तुम्हारे अन्दर
आज तुम्हे
चले जाना है
अपनी अनन्त यात्रा पर
सदा-सदा के लिए
सब कुछ यहीं
छोड़ कर
छोड़ कर
डबडबा रही है
मेरी आँखे
कलेजे में हुक सी
उठ रही है
कलेजे में हुक सी
उठ रही है
मुझे दुःख है
आज मेरे
उदगम के खोने का।
लेखिका: सुशीला कांकाणी
दिनांक: १७.०४.२००६
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