Wednesday, November 29, 2017

अक्सर मैं जब तनहा होता

अक्सर मैं जब तनहा होता, गीत तुम्हारे लिखता हूँ
बैठ कल्पना के पंखों पर, तुमसे मिलता रहता हूँ।

भूल हुई मुझसे जीतनी भी, मैं स्वीकार उन्हें करता हूँ
तुम छोड़ गई मझधार मुझे, यह स्वीकार नहीं करता हूँ। 

तुम तो भूल गई मुझको, पर मैं तो याद सदा करता हूँ
एक बार देखो ऊपर से, कब से तुम्हें निहार रहा हूँ।

नींद नहीं आती है मुझ को,यादों के संग मैं सोता हूँ 
  सपनों की गोदी  में चढ़, तुम से मिलता रहता हूँ।  

हर पल तुम्हारी यादों को, मैं दिल में बसाए  रखता हूँ
जब-जब याद तुम्हारी आती,  मैं गुनगुनाया करता हूँ।

आँखों से अश्रुजल बहता, जब भी तुम पर लिखता हूँ
कैसे लिख दूँ मन की बातें,जो कुछ लिखना चाहता हूँ।  



( यह कविता "कुछ अनकही" में छप गई है )

Thursday, November 23, 2017

सुकून भरी तुम्हारी यादें

मेरे ख्यालों में तुम थी
मेरे ख़्वाबों में तुम थी
मेरे परिहास में तुम थी
मेरे समर्पण में तुम थी
सुकून भरी तुम्हारी यादें।

मेरी शायरी में तुम थी
मेरी ग़ज़ल में तुम थी
मेरी सासों में तुम थी
मेरी बातों में तुम थी
सुकून भरी तुम्हारी यादें।

मेरी कल्पना तुम थी
मेरी भावना तुम थी
मेरी मोहब्बत तुम थी
मेरी आराधना तुम थी
सुकून भरी तुम्हारी यादें।

मेरी चाहत तुम थी
मेरी मंजिल तुम थी
मेरी जिंदगी तुम थी
मेरी बंदगी तुम थी
सुकून भरी तुम्हारी यादें।

मेरे दिल का करार तुम थी
मेरी रूह की पुकार तुम थी
मेरी रातों की नींद तुम थी
मेरे दिन का चैन तुम थी
सुकून भरी तुम्हारी यादें।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 




Monday, November 20, 2017

प्रिया मिलन को जियरा तरसे

सावन आयो बदरा बरसे
प्रिया मिलन को जियरा तरसे।

उमड़-घुमड़ कर बदरा छाए
मन में प्रिय की याद सताए
पुरवा बह के अगन लगाए
नेह - निमंत्रण याद दिलाए

सावन आयो बदरा बरसे
प्रिया मिलन को जियरा तरसे।

मयूरा नाचै सौर मचाए
पिऊ की बोली प्यार जगाए
मल्हा मेघ मल्हार सुनाए
घूँघट पट की याद दिलाए

सावन आयो बदरा बरसे
प्रिया मिलन को जियरा तरसे।

प्रिया प्रिया पपिहारी गाए
मृग-नयनी की याद सताए
मधुर कंठ से कोयल गाए
विरह-वेदना मन तड़फाए

सावन आयो बदरा बरसे
प्रिया मिलन को जियरा तरसे।


[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]

मैं आज अकेला रह गया

मेरा जीवन साथी बिछुड़ गया
          मेरा प्यार का पंछी उड़ गया
                    मैं जीवन राह में भटक गया  
                                मैं आज अकेला रह गया।  

मेरे प्यार का झरना सुख गया
         मेरा सावन पतझड़ बन गया
                     मैं मरुभूमि सा सुख गया                          
                              मैं आज अकेला रह गया।  

मेरा प्यार का मंदिर ढह गया
             मेरा गीत अधूरा रह गया 
                    मैं राह सफर में छूट गया 
                              मैं आज अकेला रह गया।  

मेरा स्वपन सलोना टूट गया
          मेरा जीवन नीरस बन गया 
                  मैं अब जीवन से हार गया
                              मैं आज अकेला रह गया।


[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]