Friday, May 31, 2013

विरासत



क्या हमने कभी
सोचा है कि है कि हम
किधर जा रहे हैं ?

एक पेड़ लगाने की
नहीं सोचते और जंगलो
को काटते जा रहे हैं

वायु मंडल में बारूद
और जहरीली गैसे छोड़ कर
वायु को प्रदुसित कर रहे हैं

नदियों में गंदा पानी
और फक्ट्रियों के केमिकल
बहा कर नदियों को गंदा कर रहे हैं

वाहनों के आत्मघाती
धुंए से ओजोन की परत में
छेद करते जा रहे हैं

समुद्रो में उठता जलजला
दरकते पहाड़ और फटती जमीन
हमें चेतावनी दे रहे हैं

बादलों का फटना
ग्लोबल वार्मिंग,भूकम्प हमें 
सावधान कर रहे हैं

फिर क्यों नहीं हम
अपनी प्यारी धरती को बचाने
की सोच रहे हैं ?

क्या हम आने वाली
पीढ़ी को यही सब विरासत में
देने जा रहे हैं ?




[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]






















Monday, May 27, 2013

कटेली चम्पा



कोलकता के
विक्टोरिया मेमोरियल
का हरा भरा मैदान

सुबह का समय
साइड वाक पर घुमते
लोगो का समूह 

कटेली चम्पा के
फूलों से वातावरण का
महकना

फूलों का अपना
अस्तित्व कायम रखने की
  हर संभव कोशिश करना

तभी क्रूर हाथों का
बढना पेड़ की तरफ और
 तोड़ लेना फूल को

दो-चार हाथों मे से 
 निकलना फुल का और
नोच डालना पंखुड़ियों को

कर डालना उसकी
गंध और कोमलता को
तहस-नहस

इन्सान की हवस से
फुल के अस्तित्व का
चिर-हरण

कटेली चम्पा के 
अन्तर से दुखोच्छवास
का छुटना। 

फूल जो पेड़ का सौंदर्य है, उसकी सोभा है, लेकिन विक्टोरीया में घूमते लोग कटेली चम्पा के पेड़ पर लगे फूल को ढूँढ कर तोड़ लेते है। थोड़ी देर फूल दो चार हाथों में घूमता है और फिर नोच कर डाल  दिया जाता है, पांच मिनट में फूल का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। 


  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]














Sunday, May 26, 2013

वह सबकी प्यारी हो गयी





 मम्मी को देख हँसने लगी 
 गोदी लो हाथ उठाने लगी
 वह अब बैठना सीख गयी
  वह सबकी प्यारी हो गयी  

      अँगूठा वह चुसने लगी
     हटाने पर मचलने लगी     
    वह अब बातूनी हो गयी
  वह सबकी प्यारी हो गयी  
  
  घुटनों के बल चलने लगी     
 चीजों को मुंह में लेने लगी     
   वह अब नटखट हो गयी   
  वह सबकी प्यारी हो गयी  

      थोड़ी थड़ी करने लगी  
   भूख लगने पर रोने लगी
   वह एक वर्ष की हो गयी
 वह सबकी प्यारी हो गयी  

 सपने देख मुस्कुराने लगी  
   आँखों को मटकाने लगी 
     वह अब चंचल हो गयी
 वह सबकी प्यारी हो गयी। 

Friday, May 24, 2013

प्रभु अगर ऐसा हो जाता



प्रभु अगर ऐसा  हो जाता
मै  छोटा पक्षी बन जाता
आसमान में ऊँचे उड़ कर
कलाबाजियाँ मैं भी खाता


पेड़ों पर मीठे फल खाता
झरनों का मैं पानी पीता
स्कूल से हो जाती छुट्टी
होमवर्क नहीं करना पड़ता


खेतों -खलिहानों में जाता 
नदी-नालों के ऊपर उड़ता
उड़ कर देश-प्रदेश देखता
नानी के घर भी उड़ जाता


उड़ने पर कोई रोक न होती
आसमान मेरा घर होता
जब तक मर्जी उड़ता रहता
शाम ढले घर पर आ जाता


मीठी वाणी बोल-बोल कर
सबके मन को मैं मोह लेता
बच्चों को मैं दोस्त बना कर
तोड़-तोड़ मीठे फल देता। 




[ यह कविता  "एक नया सफर " में प्रकाशित हो गई है। ]












Saturday, May 18, 2013

राबड़ी (राजस्थानी)

ऊँखळ के सागे
मूँसळ भी पड्यो है
दूबक्येड़ो एक खुणा मायं

कुण पूछ है अब
सगली बित्ये ज़मानै
री बाता रेगी

एक जमानो हो नाजुक कलायाँ
ऊँख़ळ में कूटती
बाजरो

चूड़ला री खणखणाट
सुणीजती गौर ओ
गुवाड़ी मांय

रंधतो खदबध खीचड़ो
र बणती छाछ री
राबड़ी

खार खीचड़ो
टाबरिया कूदता
घोड़े मान

खार राबड़ी
बाबो सोंवतो
खूंटी टाँण

राबड़ी री थाली
बाबो धो "र पिंवतो
जणा केवंतो 

सबड़को सुवाद लागे
मीठी लागे
राबडी

उंणा खुणा स्यै भरय़ा
स्याबाश म्हारी
राबड़ी।




[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
















Tuesday, May 14, 2013

मंत्री जी की दिक्षा

परम्परानुसार नया मंत्री शपथ
ग्रहण के बाद प्रधान मंत्री जी* से
आशीर्वाद लेने जाता है

प्रधान मंत्री जी उसे अर्थशास्त्र का
ज्ञान देते हुए जीवन में
अर्थ का महत्त्व बताते हैं

कुर्सी आज तुम्हारे पास है
कल नहीं भी रहे लेकिन अर्थ
जीवन में हर पल साथ देता है

इसलिए कुर्सी रहते हुए
अर्थ का आदर करना सीखो
मौका बार-बार नहीं मिलता है

मत्री अपने कार्यकाल में
प्रधान मंत्री जी की सलाह को
तहे दिल से पालन करता है

कम से कम समय में
बड़े से बड़े घोटालो को अंजाम देता है
अर्थ की व्यवस्था करता  है

एक-एक घोटाला अरबो में करता है
आठ-दस पीढ़ी तक का इंतजाम
एक बार में कर लेता है

पकड़े जाने पर
विपक्ष और न्यायलय के दबाव में
मंत्री को हटा दिया जाता है

परम्परानुसार नया मंत्री शपथ ------

*हमारे प्रधान मंत्रीजी एक अच्छे अर्थशास्त्री है ,यह कविता व्यगं मे लिखी गयी है।



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]











Wednesday, May 8, 2013

पचास वर्षो का सफ़र



मेरी चाहत थी
इसी जीवन में
सब कुछ पाने की

नहीं चाहत थी
अगले जन्म में
फिर कुछ पाने की

तुम मुझे मिली
मानो गुलशन में
बहार आई

मेरी राहों के कांटे
पलकों से उठाये
तुमने

मुझे अम्बर तक
उठने का अहसास
दिया तुमने

अपनी हँसी के संग
मुझे मुस्कराहट
दी तुमने

जीवन के पचास
बसंत साथ बिताये
तुमने

चंद शब्दो में कहूँ तो
जीवन में सब कुछ
दिया तुमने।



 [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]