क्या हमने कभी
सोचा है कि है कि हम
किधर जा रहे हैं ?
एक पेड़ लगाने की
नहीं सोचते और जंगलो
को काटते जा रहे हैं
वायु मंडल में बारूद
और जहरीली गैसे छोड़ कर
वायु को प्रदुसित कर रहे हैं
नदियों में गंदा पानी
और फक्ट्रियों के केमिकल
बहा कर नदियों को गंदा कर रहे हैं
वाहनों के आत्मघाती
धुंए से ओजोन की परत में
छेद करते जा रहे हैं
समुद्रो में उठता जलजला
दरकते पहाड़ और फटती जमीन
हमें चेतावनी दे रहे हैं
बादलों का फटना
ग्लोबल वार्मिंग,भूकम्प हमें
सावधान कर रहे हैं
फिर क्यों नहीं हम
अपनी प्यारी धरती को बचाने
की सोच रहे हैं ?
क्या हम आने वाली
पीढ़ी को यही सब विरासत में
देने जा रहे हैं ?
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
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