Monday, May 30, 2011

पर्यावरण

 


गौरव बोला कौए से          
                      काँव काँव क्यों करते हो ?
कोयल जैसी  मीठी वाणी       
                    तुम क्यों नहीं बोलते हो ?

कौआ बोला कैसे बोलूँ             
                         मै अब मीठी वाणी में  
    हक़ छीन लिया तुमने मेरा            
               वृक्ष काट दिए जंगल में

हम भी प्राणी तुम भी प्राणी      
               फिर क्योकी तुमने मनमानी
  जंगल काट सुखा दिया पानी        
                    क्योकि तुमने ये नादानी 

इसीलिए मै कर्कश स्वर में       
                   खुली शिकायत करता हूँ 
ऊँचे स्वर में चिल्ला क़रके          
                           अपनी माँगें रखता हूँ   

मत काटो पेड़ों को अब              
                 पर्यावरण बचाओ  तुम 
जीवन रक्षक पेड़ हमारे             
                समझो और समझावो तुम। 



कोलकत्ता
३० मई , 2011
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )




Tuesday, May 17, 2011

तुलसी का राम




भगवान् राम
मेरे स्वप्न में  आये 
और बोले-

 सुना है तुम    
 एक नयी रामायण  का
  अंकन करने जा  रहे हो

    मैंने कहा - हाँ  प्रभु !   
तुलसीदास जी ने आपके
 पात्र के साथ न्याय नहीं किया |

राघवेन्द्र  बोले - 
नहीं- नहीं तुम ऐसा   
मत करना

मेरा चरित्र
मनुष्य का चरित्र होने 
 के कारण ही महिमा मंडित है

   जीवन मूल्यों के प्रति
  राम की मानवता को दिखाना
ही इस कथा का सार है

मनुष्य अपने
  गुणों से देवता बन सकता है 
तुलसी ने यही दर्शाया है

अतः तुम
नयी रामायण का
अंकन मत करना

मुझे तुलसी
का राम ही रहने
  देना। 

कोलकता
१७ मई, २०११

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )



Wednesday, May 11, 2011

प्यार क़ा गीत


 जीवन का
शास्वत सत्य है
संसार में आना और जीना
जीना और चले जाना

\
किसी को
 पहले तो किसी को बाद में
जाना तो सभी को
पड़ता है

लेकिन प्यार
और मोहब्बत बांटने वाले
इस दुनिया में सदा
 अमर रहते हैं

युगों युगों तक
 लोग उनके नामों को
सम्मान के साथ याद
करते हैं

हमारे यहाँ
संतों ने प्यार बाँटा
सूर, तुलसी,रहीम ने प्यार भरे
 गीत गुनगुनाऐ

लैला-मजनू
 हीर-राँझा और 
सोहनी-महिवाल ने
मोहब्बत का गीत गाया

और इसी प्यार
और मोहब्बत के
चलते वे दुनिया में
अमर हो गए।

 आओ 
हम भी अपने आप को
अर्पित कर दे
भविष्य की पीढ़ी को

आने वाली
शान्तिमय संस्कृति को
और सदा के लिए
अमर हो जाए। 


कोलकत्ता
 १० मई , २०११


(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )