Saturday, February 23, 2013

अहसान तुम्हारा



तुम से शोभित घर आँगन
   तुम  से है जीने की  चाह 
                               
                                    बिना तुम्हारे फिर  कैसी
                                      दुनिया में जीने की चाह

हँसते हुए तुम्हे जब  देखे
   हम  सब खुश हो जाते हैं 
                                   
                                     देख उदास तुम्हारा चेहरा
                                         हम  बैचेन  हो  जाते है

प्रेरणा और शक्ति हो तुम
  हम सब की खुशहाली हो 
                                         
                                           गीता की तुम वाणी हो 
                                            तुलसी की  चौपाई हो

वात्सल्य की मधुर छाँव में
    तुमने  बांटा सबको प्यार 
                                         
                                            तुम्हारे आँचल में सिमटा
                                              इस घर  का सारा संसार 

 दीप लिए  दोनों हाथों में
     सब को राह दिखती हो 
                                               
                                                     आशीषो के शीतल झोंके   
                                                       तुम लुटाती रहती हो। 



 [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]



Wednesday, February 20, 2013

जीवसोरो (राजस्थानी)





लखदाद
देणी पड़सी
लोग किया
बोल ज्यावै 
सरासर झूठ।

पूरी लूण
की पो देवै 
सोच जे
 सामलो समझै
थोड़ो ही है।

एकर तो
मन में आवै  
के करद्यु चौड़े
सारे झूठ ने
खोलद्यु सारी पोल।

फैर सौचु  
सामलो इतो 
आतम बिसवास
स्यूं बोल्यो है
क्यूँ पाणी उतारूँ।

बात ने
 ढकेड़ी-ढुमेड़ी ही
रहण द्यूं
ढकेड़ी चीज
लागै भी सौवणी।
 


Tuesday, February 12, 2013

मेरी चाँद चकोरी।





मेरी नन्ही सी पोती
घर में रौनक लाई,
मैंने जब प्यार किया
वो थोड़ी मुस्काई।

भूख लगी तो रोने लगी
उसको दूध पिलाया,
दादीजी  फिर लेकर आई
मेरी गोदी  सुलाया। 

मैंने चन्दा को डांट लागाई
छोड़ो सपनों की पहरेदारी,
जाकर निंदिया को लाओ
सोएगी मेरी राजदुलारी।

चन्दा  लाया निंदियाँ को
गाने लगा खुद लोरी,
मीठे सपनों में खो गयी
मेरी चाँद चकोरी।



Saturday, February 9, 2013

कुल कलंकिनी



दो बच्चो की माँ
कमाऊ पति
घर में साधन सुविधा।


पता नहीं क्या देखा
सड़क छाप मजनू में
जो नहीं था पति में।


 कुछ तो देखा ही होगा
या फिर मारी गयी थी
मति उसकी। 


सब कुछ छोड़
चली गयी मजनू के संग
गुल्छरे उड़ाने।


 साथ ले गयी 
सारी संचित पूंजी और 
गहने-कपड़े। 


मोहल्ले में
खबर फ़ैली जितने लोग
उतनी बाते बनी। 


परिवार
और रिश्तेदार करने
लगे सभी थू-थू ।


माँ और भाई
का घर से निकलना
दूभर हो गया । 


सास-ससुर
तो जीते जी मर गए 
नाक कटवादी कलमुहीं ने। 


लेकिन लैला
उड़ गयी मान-मर्यादाओ
 को ताक पर रख कर।


कहते  हैं
प्यार अंधा होता है
वो कुछ नहीं देखता।


मजनू होटलों में 
ऐश करता नोचता रहा
उसके जिस्म को।


लेकिन गिद्ध
पेट भर जाने के बाद
लाश पर नहीं बैठा रहता।


एक दिन
 मजनू उड़ गया 
मासुका सोयी रह गयी।


समाज ने
 नया नाम करण
कर दिया "कुल कलंकिनी"।










 











Tuesday, February 5, 2013

प्रभु है



प्रभु ही संसार के सृष्टा है,
प्रभु ही आदि और अनन्त है,
प्रभु ही नित्य,सर्वज्ञ और पूर्ण है,
प्रभु ही अचेतन के संचालक है।

मनुष्य कर सकता है निर्माण,
लेकिन नहीं डाल सकता प्राण
प्रभु ही पारालौकिक सर्वोच्य है,
जगत के कण-कण में ब्याप्त है।

 प्रभु को किसी भी नाम से पुकारे
ईश्वर,अल्लाह,वाहे गुरु या गॉड 
नाम अलग-अलग हो सकते है
लेकिन सत्ता उसी की मानते है।

जीवन के अनुपम अवलोम्य
पारलौकिक तथ्य और प्रमाण 
जीवन मृत्यु के वृतान्त सभी
प्रभु शक्ति के ही तो प्रमाण है।

जीवन और मृत्यु से परे
 -ऐकोSहम द्वितियोनास्ती"
जगत और जीवात्मा के
सम्बन्ध  का प्रमाण है।




Monday, February 4, 2013

आयशा उठो -आँखे खोलो



आयशा !
उठो आँखे खोलो
देखो कौन-कौन
आया है  

सूरज तुमको
उठाने के लिए
   खिड़की से झांक रहा है

किरणें तुमको
उठाने के लिए
   पायल खनका रही है

चिड़िया तुमको
उठाने के लिए
मधुर गीत गा रही है

गुलमोहर तुम्हारे
कदमों के लिए
सुर्ख फुल बिखेर रहा है  

मोगरा तुम्हारी
साँसों में बस जाने
के लिए महक रहा है

सभी कायनात  
तुम्हारी आँखे खुलने  
के इन्तजार में है  

आयशा उठो
अब अपनी
आँखे खोलो।





[ यह कविता  "एक नया सफर " में प्रकाशित हो गई है। ]


Sunday, February 3, 2013

प्रेम-पत्र





आओ एक बार
फिर से ताजा करे पुरानी यादों को
और लिखे प्रेम-पत्र एक दूजे को 

खुशबू से भरे
प्रेम-पत्र में फिर से लिखे
प्यार भरी बातें एक दूजे को

फिर से झूमे
तन-मन और खिल जाए
कलि-कलि पढ़ कर प्रेम-पत्र को 

आँखों में चंचलता
होठों पर मुस्कान फिर से
लौट आये पढ़ कर प्रेम-पत्र को

बंद लिफाफा में भेजे
प्रेम-पत्र गुलाब के फूलों के साथ
पहले की तरह

करेंगे फिर इन्तजार
डाकिये का गली के मोड़ पर
पहले की तरह

आओ फिर से
लिखे प्रेम-पत्र
एक दूजे के नाम

दिल की गहराई में
लिख दे एक दूजे
का नाम।



 [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]




Saturday, February 2, 2013

पतझड़



पिट्टसबर्ग का
पतझड़ भी बड़ा
सुहावना होता है

पतझड़ लगते ही
पेड़-पौधो के पत्तो का
रंग बदलने लगता है

लाल,गुलाबी,पीले
 बेंगनी आदि रंगों में
   पेड़ बहुत सुन्दर लगते है

जमीन पर गिरते
 रंगीन पत्ते धरती को 
एक नया परिधान देते है 

दूर-दूर से लोग
प्रकृति के इस सुन्दर
   नज़ारे को देखने आते है  

पतझड़ के मौसम
में भी ढेर सारी खुशियाँ
   बटोर कर साथ ले जाते है  

काश। हम भी
   इन पेड़-पौधों से 
सीख ले पाते

अपनी जिन्दगी से
थोड़े से प्यार के रंग दूसरो की
जिन्दगी में दे पाते । 




   [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]