Saturday, March 26, 2011

गांव का घर

गाँव के
घर से जुड़ा है
मेरा बचपन
मेरा सुख -दुःख

इस की छत पर बजी है
खुशियों की थालीयाँ और
देखा गया है तीज का चाँद।

आँगण में गाये गए हैं
गीत और मनाये गए हैं
तीज और त्योंहार।

गुवाड़ी में बजी है
शहनाइयाँ और ढोल पर
हुआ है नाच। 

इस घर को बेचना
अपने अतीत को मिटाना 
अपने बचपन को भुलाना है। 

पराये शहर के
महल चाहे लाख लुभाए
अपने गाँव का घर तो
अपना ही होता है। 

चाहे में वहां
जा कर ना भी रहूँ
लेकिन वो मेरी यादों में
सदा बना रहता है।  

कोलकात्ता
२६ मार्च, २०११
(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Thursday, March 3, 2011

गीत




 बहुत दिनों से सोच रहा हूँ                      
तुम  पर कोई  गीत बनाऊं
 यादों के कुछ मोती चुनकर                   
उसकी माला तुझे पिन्हाऊं 

मेरे सुख-दुःख की साथी तुम                
         मेरे जीवन की सरगम हो       
   सांसो में फूलों की खुशबू                       
           मेरे मन की राधा हो   

  मेरी सभी सफलताओं पर                      
           हर प्रयास तुम्हारा है     
सागर और घटाओं जैसा           
                    हम दोनों का नाता है              

सौ जन्मों का साथ हमारा              
       कैसे सब मैं लिख पाऊँगा      
अनगिनत उपकार तुम्हारे        
            इतने शब्द कहाँ पाउँगा       

      सामर्थ्य नहीं हैं मेरे में                    
        तुम पर कोई गीत बनाऊँ    
इतनी इच्छा है बस मेरी            
         भावों के कुछ फूल सजाऊँ।     

कोलकत्ता
२ मार्च,  २०११

यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित  है )