गाँव के
घर से जुड़ा है
मेरा बचपन
मेरा सुख -दुःख
घर से जुड़ा है
मेरा बचपन
मेरा सुख -दुःख
इस की छत पर बजी है
खुशियों की थालीयाँ और
देखा गया है तीज का चाँद।
आँगण में गाये गए हैं
गीत और मनाये गए हैं
तीज और त्योंहार।
गुवाड़ी में बजी है
शहनाइयाँ और ढोल पर
हुआ है नाच।
खुशियों की थालीयाँ और
देखा गया है तीज का चाँद।
आँगण में गाये गए हैं
गीत और मनाये गए हैं
तीज और त्योंहार।
गुवाड़ी में बजी है
शहनाइयाँ और ढोल पर
हुआ है नाच।
इस घर को बेचना
अपने अतीत को मिटाना
अपने बचपन को भुलाना है।
पराये शहर के
महल चाहे लाख लुभाए
अपने गाँव का घर तो
अपना ही होता है।
चाहे में वहां
जा कर ना भी रहूँ
लेकिन वो मेरी यादों में
सदा बना रहता है।
कोलकात्ता
२६ मार्च, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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