Thursday, May 31, 2018

प्यार भरा जीवन रहा

एकाकी जीवन का विषाद लिए,  मैं सोचता रहा
विरह वेदना का इतना दर्द, मुझे ही क्यों हो रहा।

रात भर आँखों से अश्रु बहे, तकिया भीगता रहा
अरमान धरे रह गए, सपने चूर होते देखता रहा।

जब-जब उसकी याद आई, तस्वीर देखता रहा
झुठी हँसी हँस कर, गम के दर्द को छुपाता रहा।

दिन और रातें गुजरती रही, समय बीतता रहा
ग़मों का दर्द मुठ्ठी में दबा, जीवन को जीता रहा।

कविताओं के संग, यादों का चिराग जलता रहा
आँखें बरसती रही, कविता में दर्द  रिसता रहा।

यह बात दीगर की हमारा, उम्र भर साथ नहीं रहा
मगर जब तक साथ रहा, प्यार भरा जीवन रहा।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 



Friday, May 25, 2018

और तुम आ जाओ

घनघोर घटा हो
रिमझिम बरसात हो
मेरा मन भीगने का हो
और तुम आ जाओ।

चांदनी रात हो
गंगा का घाट हो
किनारे नौका बंधी हो
और तुम आ जाओ।

मंजिल दूर हो
पांव थक कर चूर हो
किसी का साथ न हो
और तुम आ जाओ।

आँखों में नींद हो
ख्वाबों में तुम हो
सपने का टूटना हो
और तुम आ जाओ।

मौसमें बहार हो
मिलने की चाहत हो
पलकों फूल बिछे हो
और तुम आ जाओ।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 



Thursday, May 17, 2018

हमें भी याद कर लेना

आँखों ही आँखों से,  इशारों की बात आए
घूँघट से झांक कर, हमें भी याद कर लेना।

ख़्वाबों में कभी,  हसीन चेहरा नजर आए
 थोड़ा मुस्कराकर,  हमें भी याद कर लेना।

बन संवर कर, कभी आईने के सामने जाओ
 खुद से शरमा कर,  हमें  भी याद कर लेना।

राहे सफर में, अगर चलते-चलते थक जाओ
 थोड़ी देर सुस्ता कर,  हमें भी याद कर लेना।

चाँद-सितारों की महफ़िल में, अगर कभी जाओ
थोड़ा  निचे  झांक कर,  हमें  भी  याद कर लेना।

चलो छोड़ो जाने दो, अब हम कभी नहीं रूठेंगे 
 तुम भी नजर अंदाज कर,  हमें  याद कर लेना। 

Friday, May 4, 2018

बोलने वाली रातें चली गई

शांत जीवन में, एक सुनामी लहर सी आई
पल भर में, हजारों अश्क दे कर चली गई।

जिन्दगी में हर ख़ुशी, अब गैर हाजिर हो गई
वो बोलने वाली रातें,न जाने कहाँ चली गई।

मेरी शेर ओ शायरी, किताबों में धरी रह गई
सुर्ख होठों पर लगा, पढ़ने वाली तो चली गई।

बिना सोचे समझे, वो अनमनी चाल चल गई
दिन सुनसान और रातें वीरान कर,चली गई।

कसमें खाई थी साथ रहेंगे, एकाकी कहाँ गई
एक अधूरा ख्वाब दिखा, बिना कहे चली गई।

जीवन में हर कदम पर, सिसकियाँ ही रह गई
मेरे दिल में यादों की शमा जला, वो चली गई।



 [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]