Friday, May 25, 2018

और तुम आ जाओ

घनघोर घटा हो
रिमझिम बरसात हो
मेरा मन भीगने का हो
और तुम आ जाओ।

चांदनी रात हो
गंगा का घाट हो
किनारे नौका बंधी हो
और तुम आ जाओ।

मंजिल दूर हो
पांव थक कर चूर हो
किसी का साथ न हो
और तुम आ जाओ।

आँखों में नींद हो
ख्वाबों में तुम हो
सपने का टूटना हो
और तुम आ जाओ।

मौसमें बहार हो
मिलने की चाहत हो
पलकों फूल बिछे हो
और तुम आ जाओ।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 



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