घनघोर घटा हो
रिमझिम बरसात हो
मेरा मन भीगने का हो
और तुम आ जाओ।
चांदनी रात हो
गंगा का घाट हो
किनारे नौका बंधी हो
और तुम आ जाओ।
मंजिल दूर हो
पांव थक कर चूर हो
किसी का साथ न हो
और तुम आ जाओ।
आँखों में नींद हो
ख्वाबों में तुम हो
सपने का टूटना हो
और तुम आ जाओ।
मौसमें बहार हो
मिलने की चाहत हो
पलकों फूल बिछे हो
और तुम आ जाओ।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
रिमझिम बरसात हो
मेरा मन भीगने का हो
और तुम आ जाओ।
चांदनी रात हो
गंगा का घाट हो
किनारे नौका बंधी हो
और तुम आ जाओ।
मंजिल दूर हो
पांव थक कर चूर हो
किसी का साथ न हो
और तुम आ जाओ।
आँखों में नींद हो
ख्वाबों में तुम हो
सपने का टूटना हो
और तुम आ जाओ।
मौसमें बहार हो
मिलने की चाहत हो
पलकों फूल बिछे हो
और तुम आ जाओ।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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