एकाकी जीवन का विषाद लिए, मैं सोचता रहा
विरह वेदना का इतना दर्द, मुझे ही क्यों हो रहा।
रात भर आँखों से अश्रु बहे, तकिया भीगता रहा
अरमान धरे रह गए, सपने चूर होते देखता रहा।
जब-जब उसकी याद आई, तस्वीर देखता रहा
झुठी हँसी हँस कर, गम के दर्द को छुपाता रहा।
दिन और रातें गुजरती रही, समय बीतता रहा
ग़मों का दर्द मुठ्ठी में दबा, जीवन को जीता रहा।
कविताओं के संग, यादों का चिराग जलता रहा
आँखें बरसती रही, कविता में दर्द रिसता रहा।
यह बात दीगर की हमारा, उम्र भर साथ नहीं रहा
मगर जब तक साथ रहा, प्यार भरा जीवन रहा।
विरह वेदना का इतना दर्द, मुझे ही क्यों हो रहा।
रात भर आँखों से अश्रु बहे, तकिया भीगता रहा
अरमान धरे रह गए, सपने चूर होते देखता रहा।
जब-जब उसकी याद आई, तस्वीर देखता रहा
झुठी हँसी हँस कर, गम के दर्द को छुपाता रहा।
दिन और रातें गुजरती रही, समय बीतता रहा
ग़मों का दर्द मुठ्ठी में दबा, जीवन को जीता रहा।
कविताओं के संग, यादों का चिराग जलता रहा
आँखें बरसती रही, कविता में दर्द रिसता रहा।
यह बात दीगर की हमारा, उम्र भर साथ नहीं रहा
मगर जब तक साथ रहा, प्यार भरा जीवन रहा।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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