Saturday, June 23, 2018

मेरी यादों में गांव

गांव में
गोबर-मिटटी से पुते घर
घास -फूस की झोंपड़ियाँ
अब नजर नहीं आती

पनघट पर
बनी-ठनी पनिहारिनों की
हंसी-ठिठोली
अब नजर नहीं आती

चौपाल पर
चिलम- हुक्का के संग
लम्बी-चौड़ी बैठकें
अब नजर नहीं आती

पायल संग चलती कुदाली
बैलगाड़ी पर
पुरे परिवार की सवारी
अब नजर नहीं आती

सांझ-सवेरे
गायों को दुहना
चक्की से आटा पीसना
अब नजर नहीं आता

खेतो में
चौपायों का चरना
अलगोजो को बजना
अब नजर नहीं आता

लस्सी,गुड़ के साथ
बाजरे की रोटी खाना
प्याज के साथ राबड़ी पीना
अब नजर नहीं आता।




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