Friday, December 30, 2011

पूजा

संगमरमर के बने
विशाल मंदिरों में
मणि-माणक और
स्वर्ण-रजत से सुसज्जित
प्रस्तर प्रतिमाओं के सामने
छप्पन भोगो से भरे  थालों
को सजाने से अच्छा है,
मंदिर की सीढियों  पर
बैठे किसी लूले- लंगड़े
गरीब की सुधा को
दो रोटी खिला कर
शांत किया जाय।


(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )





शवों की कीमत

दिल्ली फिर दहला
हाई कोर्ट के गेट पर
बम्ब ब्लास्ट हुवा

खून का तालाब जमा
लाशों का मंजर लगा
आतंकवाद का
नंगा नाच हुवा

सरकार ने
शवों की कीमत
पांच लाख लगाई

स्थाई तौर पर
विकलांगों की
दो लाख लगाईं

कोई नेता या
उसका रिश्तेदार
नहीं मरा

जो भी कोई मरा
आम आदमी
ही मरा

शवों की कीमत
आम आदमी की ही
लगाई जाती है

नेताओं के शवों
पर तो मालाएं
चढ़ाई जाती है।

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Thursday, December 29, 2011

प्रभु महान है

प्रभु आप महान है
इसलिए नहीं कि आपने
सूरज-चाँद बनाऐ हैं या
धरती-आकाश बनाऐ है
आप महान इसलिए हैं कि
छोटे और बड़े सभी  आपको
अपना समझते हैं।


(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )




क्या बीती

रात का समय
दिसम्बर का महीना
सर्दी की परिकाष्ठा
सन्नाटे को चिरती ठंडी हवाएं
न आकाश में चाँद न तारें
चारो तरफ घटाटोप काले-काले बादल
दिल को दहलाने वाली बिजलियाँ
और मुसलाधार वर्षा
मै उठा और कमरे की खिड़की
बंद कर निश्चिंत हो गया
फुटपाथ को बसेरा बनाए बेसहारों
पर क्या बीती किसने सोचा ?

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित  है )




Tuesday, December 27, 2011

खाद्य सुरक्षा बिल

चुहिया ने कहा -
खाद्य सुरक्षा बिल आ रहा है
अब अन्न  गोदामों में
नहीं पड़ा रहेगा
सरकार अन्न गरीबों में बांटेगी
हमें अब भूखे मरना पडेगा

चूहा बोला -
चिंता मत करो
ये राजनैतिक फैसला है
चुनाव के दिन करीब है
आम आदमी को
चारा डाला गया है

ताकि मुफ्त के अनाज का लोभ 
आम आदमी के दिल में
दया का भाव पैदा कर सके
और सरकार कि सत्ता
बची रह सके

हर बार चुनाव आने पर
आम आदमी को इसी तरह से
उल्लू बनाया जाता है
और वो उल्लू बनता हुवा 
उफ़ तक भी नहीं करता है

इस देश में
जब तक वोटों की गन्दी
राजनीति चलती रहेगी
हमारी दीवाली
ऐसे ही रहेगी  |


(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )


Monday, December 26, 2011

जिन्दगी

दुनियां में
सब कुछ तय है
कौन कब पैदा होगा
कौन कब मरेगा
कब आएगी गर्मी
कब आएगी  बरसात
कब होगी रात और
कब आयेगा प्रभात
यानी सब कुछ
पहले से ही तय है
और जब सब कुछ 
पहले से ही तय है
तब चिंता किस बात की
जिओ जिन्दगी को जिंदादिली से।


(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )


शब्द शर

त्वचा पर लगी
खरोंच मिट जाती है
शरीरी पर लगा
घाव मिट जाता है
लेकिन स्वजनों के
शब्द शरों से लगे घाव
कभी नही मिटते
वो जिंदगी भर
टिस देते रहते।