Thursday, December 29, 2011

क्या बीती

रात का समय
दिसम्बर का महीना
सर्दी की परिकाष्ठा
सन्नाटे को चिरती ठंडी हवाएं
न आकाश में चाँद न तारें
चारो तरफ घटाटोप काले-काले बादल
दिल को दहलाने वाली बिजलियाँ
और मुसलाधार वर्षा
मै उठा और कमरे की खिड़की
बंद कर निश्चिंत हो गया
फुटपाथ को बसेरा बनाए बेसहारों
पर क्या बीती किसने सोचा ?

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित  है )




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