Tuesday, April 30, 2013

अंग दान करे

जब कोई वस्तु हमारे काम की
नहीं रहती तब भी उसकी
उपयोगिता रहती है

भले ही वो हमारे काम की
नहीं रहे, किन्तु किसी दुसरे
के तो काम आ ही सकती है

शरीर जो आज हमारा है
कल हमें छोड़ कर जाना होगा
पता नहीं कब साँझ ढल जाये

फिर क्यों नहीं ऐसा करे कि जो 
हमारे काम का नहीं है वो किसी
दुसरे के काम आ जाये

हम अपनी आँखे दे कर
किसी के जीवन में रोशनी की
किरण ला सकते है

हम अपना ह्रदय देकर
किसी की धड्कनो को ज़िंदा
रख सकते है

हम अपने फेफड़े दे कर
किसी की साँसों को जीवित
रख सकते है

हम अपने गुर्दे दे कर
किसी के जीवन को बचा
सकते है

शरीर के अंगो का दान कर
कई लोगो को नया जीवन
दिया जा सकता है

तो फिर क्यों नहीं
इस शुभ कार्य की शुरुआत
हम आज ही करें

मृत शरीर का दान कर
अनेको की जिंदगी फिर से
रोशन करें।


No one should assume
they are too old or unhealthy
to donate organs.
Even those people who know
they are dying may qualify,
as successful transplants
have been performed from
all sorts of donors.
The heart, kidneys, lungs,
pancreas and liver might be
debilitated by treatment or disease,
but eye, bone and skin tissue
may all be suitable for grafting
and transplantation.


  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]











Monday, April 29, 2013

पिट्सबर्ग तुम याद आवोगे

मुझे  पिट्टस बर्ग  अच्छा लगा 
गिरते बर्फ के फोहों के बीच भी
मुझे सुखद आभास होने लगा
पश्चिम की संस्कृति को देखने 
समझने का अवसर भी मिला
कुछ नया देख कर अच्छा लगा

अच्छा लगा रास्ते चलते 
मुस्करा कर हाय कहना और 
थैंक्स बोलकर आभार प्रकट करना

सड़क पर पैदल चलते यात्रियों को 
गाडी रोक कर रास्ता पार कराना 
बूढ़े और अपाहिजों को पहल देना 


अच्छा लगा साईड वाक पर दौड़ना
जिम में जा कर ब्यायाम करना
स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहना

मेहनत और सच्चाई से सुखपूर्वक
आनंदमय जीवन यापन करना 
यथासंभव दूसरों की सहायता करना

लेकिन कुछ बुरा भी लगा 
तुलना कर देखा तो मेरा देश
एक पायदान ऊपर  लगा 


लेकिन कुछ भी हो पिट्स बर्ग
मेरी यादो में हमेशा बसा रहेगा
 मुझे याद तो आता ही रहेगा।



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

Tuesday, April 23, 2013

तब जाकर नेता बने




जो  कानून से नहीं डरे
बड़े से बड़े घोटाले करे
भ्रस्टाचार में नाम करे
चोरी स्मगलिंग सब करे
                         जब कोई ऐसे काम करे
                             तब जाकर नेता बने

जातिवाद का शंख बजाऐ 
क्षैत्रवाद का भूत जगाऐ 
सम्प्रदायों को भड़का कर 
दंगा और फसाद कराऐ  
                          जब कोई ऐसे काम करे
                              तब जाकर नेता बने

सरकारी धन का गबन करे
रिश्वत खाये  बेईमानी करे
जेल में जाकर अनशन करे
बाहर निकल भाषण करे
                            जब कोई ऐसे काम करे
                                तब जाकर नेता बने

श्रमिको के संगठन बनाये
कारखानों को बंद कराये  
रेले  रोके बसे जलाए 
तोड़-फोड़ और आग लगाए
                              जब कोई ऐसे काम करे
                                  तब जाकर नेता बने

जनता में दशहत फैलाए
चुनावों में फर्जी वोट डलाए
असली वोटर जब भी आए
उन्हें मार कर दूर भगाए
                              जब कोई ऐसे काम करे
                                   तब जाकर नेता बने



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]





















Sunday, April 21, 2013

देखो बसंत आया रे


  
गमकती बयार चली 
        नव प्रसून फुले रे 
            केशरिया वस्त्र पहन
                 फोरसिंथिया लहराया रे
                          देखो बसंत आया रे।

हिम के दिन बीत चले
       सूरज बाहर निकला रे 
              रंग-बिरंगे रंगों में फिर 
                    ट्यूलिप मुस्कराया रे
                           देखो बसंत आया रे।

खिल उठी कलि-कलि
        महक उठा चमन रे 
              रंग-बिरंगे फूलों की
                     खुशबु पवन चुराए रे
                             देखो बसंत आया रे।

फूलो पर तितली मंडराये 
          पक्षी गीत  सुनाये रे 
                 पेड़ों के संग मस्ती में
                         हवा बजाये ताली रे
                                देखो बसंत आया रे।
  
गदराई हर डाल-डाल
        नेक्ट्रीन भी दमका रे 
                चैरी ट्री ने ओढ़े सुमन 
                      फूटा रंगों का झरना रे 
                               देखो बसंत आया रे।






पिट्सबर् (अमेरिका) में बसंत का नजारा देख कर तन-मन झूम उठा। १० दिन पहले यहाँ बर्फ गिर रही थी। तापमान माइनस तीन डिग्री पर था और आज चारो तरफ फूल खिल रहे है। घरो के सामने लोन में हरी घास की चुनर बिछ गयी  है। साइड वाक् फूलो से ढक गए है। चैरी,फोरसिथिया,ट्यूलिप,पीच ट्री, पियर ट्री, नेक्ट्रीन, ऐप्रिकोट, मैग्नोलिया के पेड़ फूलो से लद गए है। पत्तियों रहित टहनियाँ गुलाबी,सफ़ेद,नारंगी, लाल,बेंगनी नीले फूलो से ढक गयी है। लगता है प्रकृति खुद उत्सव मनाने लगी हो।

पक्षियों की मधुर आवाजे पेड़ो पर गूँजने लगी है।मेगनोलिया के गहरे लाल रंग के फुलो के परिधान में धरती नववधु सी लग रही है। सफ़ेद फूलो वाले ऐपरीकोट ट्री ऐसे लगते है जैसे सफ़ेद रेशमी पताकाऐं फहरा रही है। साइड वाक पर झाड़ियों की कतारों में फोरसिंथिया के पीले फूल खिले हुए है। घरो के सामने रंग-बिरंगे टूलिप फूलो का सोन्दर्य तो देखते ही बनता है। फूलो की खुशबु अपनी सौरभ से वायु को सुवासित कर रही है।लगता है जैसे पिट्सबर्ग  में नंदन कानन उतर आया है।



  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]



Thursday, April 11, 2013

प्रकृति का अनमोल खजाना





प्रकृती ने लुटाया है 
अपनी भव्यता का 
अनमोल खजाना
मिलाइए एक नजर 

विशाल आकाश
झिलमिलाते तारें
रंग बदलते बादल 
उठाइये एक नजर

विशाल जलराशि
रत्नाकर की गर्जन 
जलचर का संसार
झाँकिये एक नजर

जंगलों का साम्राज्य
पक्षियों का कलरव 
झरनों का संगीत 
डालिए एक नजर

विशाल पर्वत मालाऐं 
चमकती हिमराशि
बहती नदियाँ 
ताकिए एक नजर। 









Saturday, April 6, 2013

पिछले जन्म का रिश्ता


फ्रांसिस !
तुम पिछले जन्म में
जरुर मेरी कोई मीत
रही होगी

या किसी जन्म में हम 
एक दूजे के साथ
 रही होगी 

दुनिया के एक छोर पर मै
दुसरे छोर पर तुम
फिर यह कैसा मिलन ?
  
यह कैसा रिश्ता जो सात 
समुद्र पार भी करा 
देता मिलन ?

तुम रात-रात भर अस्पताल में
बैठी रही और मेरे लिए
प्रार्थना करती रही

   जैसे कोई करता है
अपनो के लिए
तुम मेरे लिए करती रही

        अस्पताल से तुम मुझे        
 अपनी प्यारी ड्रीमी 
से घर लाती रही

घर पर भी कभी फूल 
तो कभी गुलदस्ता
देती रही

जब भी आती कार्ड लाती 
जिसमे बोलती तुम्हारे
दिल की धड़कने

कागज़ के हवाई जहाज 
बना कर लाती
हवा में उड़ाने मेरी अड़चने
                                                 
एक दूजे की भाषा से
अनभिज्ञ फिर भी 
करती बातें 
             
सात समुद्र पार के
रिश्ते भी आत्मा की
 गहराई तक उतर जाते।


  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]

झमाझम बारिश मे

                                   

                                       करलो मन की बात 
                                          झमाझम  बारिश में   

कागज़ की एक नाव बनाओ
छोडो        उसको   पानी मे,
भीगने       का  मजा     लेने 
 कूदो   छपाक   से   पानी में

                                           करलो मन की बात 
                                            झमाझम  बारिश में   


आई  पुरवाई    मदमाती 
  मिल कर   भिगो पानी में  
 सब मिल कर फिर गाओ 
 वर्षा  गीत बरसते पानी में 

                                          करलो मन की बात  
                                          झमाझम  बारिश में 

ठेले पर भुट्टे भुनवा कर
 खाओ  बरसते  पानी में
 रैनी डे  की  छुट्टी  होगी 
  नाचो    कूदो   पानी  में। 

                                      करलो मन की बात
                                        झमाझम  बारिश में

गरमा -गरम चाय पकौड़ी
मिल  कर खाओ पानी में,
मम्मी जब भी डांट लगाए
 मत  भिगो तुम  पानी  में।

                                         करलो मन की बात
                                           झमाझम  बारिश में  

 गीली मिटटी से घर बनाओ 
भीगो     बरसते   पानी  में,
सर्दी  लगे   नाक बहे   तब 
  खाओ    हलवा   बिस्तर में।

                                         करलो मन की बात
                                          झमाझम  बारिश में। 




[ यह कविता  "एक नया सफर " में प्रकाशित हो गई है। ]



Wednesday, April 3, 2013

एक नया सफ़र





मेरी शादी की चुन्दड़ी में
लगे सलमे-सितारे अब मेरी
आत्मा में चुभने लगे है।


लग्न और मुहूर्त में
बन्धे ये सारे बन्धन
मुझे अब झूठे लगने लगे है।


मै नहीं भूला सकती
अपनी पीड़ा और अपमान
जो उसने मुझे दिये है।


व्यथित शब्दों
के तीर अब मेरे ध्यैर्य की
आख़िरी सीमा भी लांघ गये है।


मेरा स्वाभिमान भी
अब उसके अंहकार के लिए
खतरा बन गया।


मैंने जितना
समर्पण का भाव रखा
उतना ही वो निष्ठुर बन गया।


मै जीवन संगिनी
या सहभागिनी की जगह
बंदिनी बना दी गयी।


कंकरीट में दबी
पगडण्डी की तरह मेरी
सभी इच्छाए दबादी गयी।


मै अब इस बंधन से
मुक्त होकर अपना नया
जीवन जीना चाहती हूँ।


पुरानी यादो को
अब मै हमेशा के लिए
दफना देना चाहती हूँ।


अपनी शादी की
चुन्दडी को अब मै
उतार देना चाहती हूँ।

 
उसमे लगे
सलमे-सितारे अब मै
उधेड़ देना चाहती हूँ।