गमकती बयार चली
नव प्रसून फुले रे
केशरिया वस्त्र पहन
फोरसिंथिया लहराया रे
देखो बसंत आया रे।
हिम के दिन बीत चले
सूरज बाहर निकला रे
रंग-बिरंगे रंगों में फिर
ट्यूलिप मुस्कराया रे
देखो बसंत आया रे।
खिल उठी कलि-कलि
महक उठा चमन रे
रंग-बिरंगे फूलों की
खुशबु पवन चुराए रे
देखो बसंत आया रे।
फूलो पर तितली मंडराये
पक्षी गीत सुनाये रे
पेड़ों के संग मस्ती में
हवा बजाये ताली रे
देखो बसंत आया रे।
गदराई हर डाल-डाल
नेक्ट्रीन भी दमका रे
चैरी ट्री ने ओढ़े सुमन
फूटा रंगों का झरना रे
देखो बसंत आया रे।
पिट्सबर् (अमेरिका) में बसंत का नजारा देख कर तन-मन झूम उठा। १० दिन पहले यहाँ बर्फ गिर रही थी। तापमान माइनस तीन डिग्री पर था और आज चारो तरफ फूल खिल रहे है। घरो के सामने लोन में हरी घास की चुनर बिछ गयी है। साइड वाक् फूलो से ढक गए है। चैरी,फोरसिथिया,ट्यूलिप,पीच ट्री, पियर ट्री, नेक्ट्रीन, ऐप्रिकोट, मैग्नोलिया के पेड़ फूलो से लद गए है। पत्तियों रहित टहनियाँ गुलाबी,सफ़ेद,नारंगी, लाल,बेंगनी नीले फूलो से ढक गयी है। लगता है प्रकृति खुद उत्सव मनाने लगी हो।
पक्षियों की मधुर आवाजे पेड़ो पर गूँजने लगी है।मेगनोलिया के गहरे लाल रंग के फुलो के परिधान में धरती नववधु सी लग रही है। सफ़ेद फूलो वाले ऐपरीकोट ट्री ऐसे लगते है जैसे सफ़ेद रेशमी पताकाऐं फहरा रही है। साइड वाक पर झाड़ियों की कतारों में फोरसिंथिया के पीले फूल खिले हुए है। घरो के सामने रंग-बिरंगे टूलिप फूलो का सोन्दर्य तो देखते ही बनता है। फूलो की खुशबु अपनी सौरभ से वायु को सुवासित कर रही है।लगता है जैसे पिट्सबर्ग में नंदन कानन उतर आया है।
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
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