फ्रांसिस !
तुम पिछले जन्म में
जरुर मेरी कोई मीत
रही होगी
या किसी जन्म में हम
एक दूजे के साथ
रही होगी
रही होगी
दुनिया के एक छोर पर मै
दुसरे छोर पर तुम
फिर यह कैसा मिलन ?
फिर यह कैसा मिलन ?
यह कैसा रिश्ता जो सात
समुद्र पार भी करा
देता मिलन ?
तुम रात-रात भर अस्पताल में
बैठी रही और मेरे लिए
प्रार्थना करती रही
जैसे कोई करता है
अपनो के लिए
तुम मेरे लिए करती रही
अस्पताल से तुम मुझे
अपनी प्यारी ड्रीमी
से घर लाती रही
घर पर भी कभी फूल
तो कभी गुलदस्ता
देती रही
देती रही
जब भी आती कार्ड लाती
जिसमे बोलती तुम्हारे
दिल की धड़कने
दिल की धड़कने
कागज़ के हवाई जहाज
बना कर लाती
हवा में उड़ाने मेरी अड़चने
हवा में उड़ाने मेरी अड़चने
एक दूजे की भाषा से
अनभिज्ञ फिर भी
अनभिज्ञ फिर भी
करती बातें
सात समुद्र पार के
रिश्ते भी आत्मा की
गहराई तक उतर जाते।
[ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]
रिश्ते भी आत्मा की
गहराई तक उतर जाते।
[ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]
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