Tuesday, June 30, 2015

मन की पीर

तुम जीवन के
राहे -सफर में मुझे
अकेला छोड़ कर चली गई

तुमने यह भी नहीं सोचा कि
कल सुबह कौन पिलाएगा मुझे
अदरक वाली चाय

कौन बनाएगा मेरे लिए
केर-सांगरी का साग और
मीठी आंच पर रोटी

कौन खिलायेगा 
दुपहर में चाय के साथ
मीठी-मीठी केक और पेस्ट्री

कौन घुमायेगा
मेरे बालों में अपनी
नरम-नरम अंगुलियाँ

कौन फंसेगा
मेरे संग जीवन की
शतरंजी चालों में

बिना तुम्हारे 
कैसे पूरी कर पाउँगा 
जीवन की अधूरी कविता को 

कैसे भूल पाउँगा
तुम्हारे संग देखे
जीवन के ख़्वाबों को। 


                                               [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]




Saturday, June 27, 2015

अपनी विरासत

गाँवों में लोग 
आज भी देते है सूर्य को अर्द्ध 
सिंचते हैं तुलसी को जल

आज भी वहाँ 
पड़ते हैं सावन के झूले 
गूंजते हैं कजरी के बोल

औरते रखती है 
चौथ का व्रत और करती है
निर्जला एकादसी

भोरा न भोर 
करती है ठन्डे पानी से स्नान
रखती व्रत कार्तिक मासी

दिवाली में 
गोबर से निपती है घर
 मांडती है रंगोली

होली में 
बच्चे-बुड्ढे हो जाते एक 
लगाते रंग, खेलते हैं होली

गांव आज भी 
पुरखों की बनाई व्यवस्था 
पर गर्व करते हैं 

अपनी विरासत को 
पीढ़ी दर पीढ़ी संजोए 
रहते हैं। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )






Thursday, June 25, 2015

चलो भीगते हैं

कलकत्ते में 

आ गया मानसून 
सुबह से झमाझम 
पानी बरस रहा है 

वर्षा की फ़ुहारों संग 
बरसने लगी है 
तुम्हारी यादें

बरसात में भीगने 
का तुम्हें बहुत 
शौक था 

बरसात आते ही 
तुम सदा मेरा 
हाथ पकड़ कहती 
चलो भीगते हैं 

हर बारिश में 
तुम ले जाती 
मुझे अपने साथ 

बारिश की बूंदों में तो 
आज भी वही ताजगी 
और शरारत है 

मगर आज तुम नहीं हो 
अब कौन कहेगा मुझे 
चलो भीगते हैं 

काश !
तुम आज मेरे साथ होती 
और हाथ पकड़ कहती 
चलो भीगते हैं। 

( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। ) 




Friday, June 19, 2015

तुम अगर आओ तो

तुम अगर आओ तो
आज भीगने चले
बारीश की बौछारों में

तुम अगर आओ तो
आज संग-संग दौड़े
हँसती हरियाली में

तुम अगर आओ तो
आज बाग में घूमने चले
भौंरों के गुंजारों में

तुम अगर आओ तो
आज प्यार बरसाए
चमकती चांदनी में

तुम अगर आओ तो
आज मिलन गीत गाऐं
बासंती हवाओं में

तुम अगर आओ तो
आज झूलों पर झूले
सावन की बहारों में।


  [ यह कविता 'कुछ अनकही ***"में प्रकाशित हो गई है ]


Tuesday, June 16, 2015

आज भी बसी हो मेरी यादों में

कौन कहता है
कि तुम चली गई
तुम तो आज भी बसी हो
मेरी यादों में

मेरी साँसों में
मेरे दिल में और
अब तो तुम आने लगी हो
मेरी बातों में

दो साल से
तुम्ही तो छाई हुई हो
मेरी कविताओं में

अगले जन्म में
तुम फिर मिलना
मुहब्बत का फूल लिए
हाथों में

मेरे जैसा दीवाना
भला कहाँ मिलेगा तुम्हें
इस बेगानी दुनियां में।


 [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]




अब मैं क्या करूँ ?

तुम  तो बिना कहे चली गई, मुझे अकेला छोड़ 
मेरे जीवन में अन्धेरा छा गया, अब मैं  क्या करूँ ?


                               जब तक तुम साथ थी, अरमान मचलते थे
                              आज बिखर गया जीवन, अब मैं क्या करूँ ?

तुम्हारी बातें, तुम्हारे हंसी, सभी याद आती है 
दिल से नहीं निकली यादें, अब मैं  क्या करूँ ?


                         तारों को गिनते हुए कटती है, मेरी काली रातें 

                         ख्वाबों का चमन उजड़ गया, अब मैं क्या करूं  
  
तुम्हारे बिछोह की आग को,अब मैं कैसे बुझाऊँ 
किसी  किताब  में नहीं लिखा, अब मैं क्या करू ?

                          तुम्हारे जाते ही, मेरा कल मुझ से रूठ गया 
                          मेरा जीवन तनहा हो गया, अब मैं क्या करूँ ?   


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Monday, June 15, 2015

मोहब्बत की डोर

जैसे हवा
रहती है हर जगह
वैसे ही अब तुम रहती हो

हवा दिखाई नहीं देती
लेकिन अपने होने का
अहसास करा देती है

कभी दरवाजे को
हल्का सा थपथपा कर
तो कभी पेड़ की पत्तियों को
धीरे से सरसरा कर

तुम भी हवा की तरह
थिरकती रहती हो
मेरे चहुँ ओर

कभी निकल जाती हो
बगल से छू कर
तो कभी बिखर जाती  हो
खुशबू बन कर

दिल खिल जाता है
हो जाता है दिप-दिप
लगता है झूमने
तुम्हारी खुशबू में डूब कर

सन्दली हवाओं के
धागों से आज भी बंधी है
हमारी मोहब्बत की डोर।


 [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]















Friday, June 12, 2015

प्यार भरे पैगामों में

एक दिन तुमने कहा था--
मुहब्बत कब मरी है,
वह तो मरने के बाद भी
अमर रही है

सदियाँ गुजर गई
लेकिन ताजमहल में
मोहब्बत आज भी ज़िंदा है
हीर-रांझा, लैला-मजनू का प्यार
दुनियाँ में आज भी अमर है

आज जब भी
मैं तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ
मुझे सर्दियों की गुनगुनी धूप सा
दिल में अहसास होता है

मैं खो जाता हूँ
तुम्हारे गुलाबी नरम सपनों में
रुबरु कराती है तुम्हारी यादें
जैसे तुम बसी हो मेरे दिल में

तुम आज भी जीवित हो
मेरे मन के किसी अदृश्य कोने में
सितारों पर लिखे प्यार भरे पैगामों में

तुमने ठीक ही कहा था
मोहब्बत कब मरी है
वह तो मरने के बाद भी
सदा अमर रही है।




                                                 [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]














Wednesday, June 10, 2015

लुक मिंचणी रो खेल (राजस्थानी कविता)

जिंदगानी रै मेळै में
थूं मांड राख्यो है म्हारै सागै
लुक मिंचणी रो खेल

जुगां जुगां स्यूं
आज तांई थूं खेलती आई
म्हारै सागै बाळपणै रो खेल

आज तांई थूं लुकै
अर म्हैं थनै बावळा दांई
ढूंढतो रेवूं

पण थूं फेर कौनी मिलै
म्हैं थनै आखी जिंदगानी
ढूंढतो रेवूं

थूं खेल-खेल में
सारो माँड्योड़ो खेल
छोड़ ज्यावै

म्हैं देखतो रै ज्याऊं
अर थूं चाणचक फुर्र स्यु
उड़ ज्यावै

थूं कद तांई खैलेली
म्हारी जिंदगानी में
ओ खेल

कद तांई म्हैं
थनै ढुंढतो रेवूंळा
अर खेळतो रेवूंला खेल।


[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]


Monday, June 8, 2015

मैंने रखा उसे संभाल

राजा से ल्याई हाथी घोड़े
रानी ने चूमा मेरा गाल
हीरों का मुकुट पहनाया
मैंने रखा उसे संभाल।

चन्दा घर खाई दूध मलाई
तारों से सीखी प्यारी चाल
नील परी ने हार पहनाया 
मैनें रखा उसे संभाल।

सागर में मछली संग खेली
मोती लाई भर कर थाल  
सबने मुझको प्यार किया 
मैंने रखा उसे संभाल।

बागों में तितली संग खेली 
देख रंग में हुई निहाल 
उसने मुझको फूल दिया 
मैंने रखा उसे संभाल। 



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