कलकत्ते में
आ गया मानसून
सुबह से झमाझम
पानी बरस रहा है
वर्षा की फ़ुहारों संग
बरसने लगी है
तुम्हारी यादें
बरसात में भीगने
का तुम्हें बहुत
शौक था
बरसात आते ही
तुम सदा मेरा
हाथ पकड़ कहती
चलो भीगते हैं
हर बारिश में
तुम ले जाती
मुझे अपने साथ
बारिश की बूंदों में तो
आज भी वही ताजगी
और शरारत है
मगर आज तुम नहीं हो
अब कौन कहेगा मुझे
चलो भीगते हैं
काश !
तुम आज मेरे साथ होती
और हाथ पकड़ कहती
चलो भीगते हैं।
आ गया मानसून
सुबह से झमाझम
पानी बरस रहा है
वर्षा की फ़ुहारों संग
बरसने लगी है
तुम्हारी यादें
बरसात में भीगने
का तुम्हें बहुत
शौक था
बरसात आते ही
तुम सदा मेरा
हाथ पकड़ कहती
चलो भीगते हैं
हर बारिश में
तुम ले जाती
मुझे अपने साथ
बारिश की बूंदों में तो
आज भी वही ताजगी
और शरारत है
मगर आज तुम नहीं हो
अब कौन कहेगा मुझे
चलो भीगते हैं
काश !
तुम आज मेरे साथ होती
और हाथ पकड़ कहती
चलो भीगते हैं।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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