तुम अगर आओ तो
आज भीगने चले
बारीश की बौछारों में
तुम अगर आओ तो
आज संग-संग दौड़े
हँसती हरियाली में
तुम अगर आओ तो
आज बाग में घूमने चले
भौंरों के गुंजारों में
तुम अगर आओ तो
आज प्यार बरसाए
चमकती चांदनी में
तुम अगर आओ तो
आज मिलन गीत गाऐं
बासंती हवाओं में
तुम अगर आओ तो
आज झूलों पर झूले
सावन की बहारों में।
[ यह कविता 'कुछ अनकही ***"में प्रकाशित हो गई है ]
आज भीगने चले
बारीश की बौछारों में
तुम अगर आओ तो
आज संग-संग दौड़े
हँसती हरियाली में
तुम अगर आओ तो
आज बाग में घूमने चले
भौंरों के गुंजारों में
तुम अगर आओ तो
आज प्यार बरसाए
चमकती चांदनी में
तुम अगर आओ तो
आज मिलन गीत गाऐं
बासंती हवाओं में
तुम अगर आओ तो
आज झूलों पर झूले
सावन की बहारों में।
[ यह कविता 'कुछ अनकही ***"में प्रकाशित हो गई है ]
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