जिंदगानी रै मेळै में
थूं मांड राख्यो है म्हारै सागैलुक मिंचणी रो खेल
जुगां जुगां स्यूं
आज तांई थूं खेलती आई
म्हारै सागै बाळपणै रो खेल
आज तांई थूं लुकै
अर म्हैं थनै बावळा दांई
ढूंढतो रेवूं
पण थूं फेर कौनी मिलै
म्हैं थनै आखी जिंदगानी
ढूंढतो रेवूं
थूं खेल-खेल में
सारो माँड्योड़ो खेल
छोड़ ज्यावै
म्हैं देखतो रै ज्याऊं
अर थूं चाणचक फुर्र स्यु
उड़ ज्यावै
थूं कद तांई खैलेली
म्हारी जिंदगानी में
ओ खेल
कद तांई म्हैं
थनै ढुंढतो रेवूंळा
अर खेळतो रेवूंला खेल।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
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