तुम जीवन के
राहे -सफर में मुझे
अकेला छोड़ कर चली गई
राहे -सफर में मुझे
अकेला छोड़ कर चली गई
तुमने यह भी नहीं सोचा कि
कल सुबह कौन पिलाएगा मुझे
अदरक वाली चाय
कौन बनाएगा मेरे लिए
केर-सांगरी का साग और
मीठी आंच पर रोटी
कौन खिलायेगा
दुपहर में चाय के साथ
मीठी-मीठी केक और पेस्ट्री
कौन घुमायेगा
मेरे बालों में अपनी
नरम-नरम अंगुलियाँ
कौन फंसेगा
मेरे संग जीवन की
शतरंजी चालों में
बिना तुम्हारे
कौन घुमायेगा
मेरे बालों में अपनी
नरम-नरम अंगुलियाँ
कौन फंसेगा
मेरे संग जीवन की
शतरंजी चालों में
बिना तुम्हारे
कैसे पूरी कर पाउँगा
जीवन की अधूरी कविता को
कैसे भूल पाउँगा
तुम्हारे संग देखे
जीवन के ख़्वाबों को।
तुम्हारे संग देखे
जीवन के ख़्वाबों को।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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