Wednesday, November 23, 2011

ऊँखल मुसळ (राजस्थानी कविता)

घणोई पुराणों
रिश्तो है
रसोई रे सागे
ऊँखल अर मुसळ को

एक लम्बो 
इतिहास है
मिनखा रो  
कूटणे - खाणे रो

घर री धिराणी 
कूटती धान 
पाळती परवार ने 

घाळती 
खीचड़ो अर राबड़ी
घर रे टाबरा ने 

पण आज
ऊँखल-मुसळ खूंणा में 
पड्यो रेव एकलो 

जियां घर रो 
डोकरो पोली माथे 
पड्यो रेव एकळो 

मसीना री घङघड़ा हट मांय 
घंटा रो काम मिंटा मांय 
हुण लागग्यो 

पण ऊँखल-मुसळ
रो स्वाद छिट कर 
दूर भागग्यो 

ओ पुरखो है
मिनखारों 

ब्याव सावा में
आज भी पूजीजै है
बुड्ढा बड़ेरा रै जियां 

हल्दी चावल
रो तिलक काढणे
आज भी लगावे है
कुमकुम रा छींटा 

जणा जार
पूरी हुवे है 
ब्याव री रीतां। 




कोलकाता
२४ नवम्बर, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में  है )

Thursday, November 17, 2011

धन सब कुछ नहीं


धन से बंगला तो  खरीदा
जा सकता है, लेकिन
सुख और शांति नहीं

धन से बढ़िया पलंग और
गद्दा तो खरीदा जा सकता है
लेकिन नींद नहीं

धन से अच्छे अस्पतालों में
कमरा तो लिया जा सकता है
लेकिन स्वास्थ्य नहीं

धन से बाहुबली का पद तो
पाया जा सकता है
लेकिन सम्मान नहीं

धन से अच्छे पकवान तो
ख़रीदे जा सकते है
लेकिन भूख नहीं

धन-दौलत-पैसा
बहुत कुछ हो सकता है
लेकिन सब कुछ नहीं

हर इन्सान के पाँव के नीचे
जमीन और सिर के ऊपर
आसमान होता है

एक दिन सभी को
दो गज कफ़न के साथ
खाली हाथ जाना पड़ता है।




यह कविता  कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Tuesday, November 15, 2011

होली

           




हुरियारों की आई टोली
            बजा चंग सब गाये होली            
 भर जाये खुशियों से झौली                                                                                                                                     आओ मिल कर खेलें होली      

भर पिचकारी रंग डालते
                  एक दूजे पर हमजोली
घुटे भाँग और पिए ठण्डाई
          आओ मिल कर खेलें होली  

देवर- भाभी, जीजा-साली     
           आपस में सब करे ठिठोली  
बजे चूड़ियाँ, फिसले साड़ी
           आओ मिल कर खेलें होली  

हर आँगन पायल झनके
              हर चोखट चन्दन रोली 
तन में मस्ती, मन में मस्ती
          आओ मिल कर खेलें होली 

हर भोलो कान्हो लागे        
                 हर गोपिन राधा गौरी     
रंग तरंग की बौछारों में         
            आओ मिल कर खेलें  होली। 

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )



Wednesday, November 9, 2011

जीवन अमृत

इश्वर सबका मालिक है                  
              इसी भाव से जीना है 
हरिमय जीवन सबका हो               
              ऐसा सत्संग करना है। 

आपस में सब भाई-भाई               
           ऐसे मिल कर रहना है 
ओणम,क्रिसमस, ईद,दिवाली          
          मिल कर साथ मनाना है। 

मानवता हो धर्म सभी का           
             शील -विनय से रहना है
भेद-भाव से ऊपर उठकर             
                  सब को गले लगाना है। 

राग द्वेष का तिमिर हटा कर         
              प्रेम की ज्योति जलाना है 
मिले धूप हर आँगन को              
                   अब ऐसा सूरज लाना है। 

   भूले राही को राह दिखा कर        
                     मंजिल तक पहुँचाना है
सभी सुखी और स्वस्थ रहें           
                        ऐसा संसार बनाना है। 


कोलकाता
११ नवम्बर, २०११
(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )


Friday, November 4, 2011

अपनों का प्यार

इंसान को बहुत कुछ
नहीं चाहिए जीने के लिये
अगर मिल जाये अपनों का
थोड़ा सा प्यार

लेकिन प्यार की जगह मिले
घावों से डबडबा जाती है आँखें
और धूमिल हो जाती है
सभी आकाक्षाएँ

वक्त के साथ भले ही
धूमिल पड़ जाए यादें
फिर भी मन को
कचोटती रहती है बातें

अपनो से सुनी बातों का
दुःख तो जरुर होता है
लेकिन जो होता है वो
अच्छे के लिए ही होता है 

कुछ चोटों के निशान
रहे तो उन्हें देख कर
संभल कर चलना तो
आ ही जाता है।

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित  हो गयी है )

Tuesday, November 1, 2011

कसाब को बिरयानी

हर घटना
एक समय बाद
इतिहास की घटना
बन जाती है 

युद्ध पानीपत का हो
या हल्दीघाटी का
आतंकी हमला मुंबई पर हो
या पार्लियामेंट पर 
सभी घटनाएं इतिहास के
पन्नों में दर्ज हो जाती है 
  
आने वाली पीढियाँ
इतिहासिक घटनाओं से
जब रूबरू होती है तब  
महात्मा गाँधी,भगत सिंह और
सुभाष चन्द्र बोस जैसे  प्रसंगों को
पढ़ कर गर्व करती है 

लेकिन आज जब वो
अपने देश के इतिहास में पढ़ती है
कि मुंबई आतंकी हमले के दोषी
कसाब को फाँसी की जगह
सरकार बिरयानी खिलाती रही

या पार्लियामेंट पर
आतंकी हमले के दोषी
अफजल गुरु को सरकार
दस वर्ष तक सजा देने में
नाकाम रही

तो उसका मन
इतिहास का सर्जन
करने वालो के प्रति
नफ़रत से भर जाता है


और उसका दिल
देश के इन कथित नेताओं को
चुल्लू भर पानी में डूब मरने
के लिए कहता है।


(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )





कोलकता
३१ अक्टुम्बर २०११