Thursday, November 17, 2011

धन सब कुछ नहीं


धन से बंगला तो  खरीदा
जा सकता है, लेकिन
सुख और शांति नहीं

धन से बढ़िया पलंग और
गद्दा तो खरीदा जा सकता है
लेकिन नींद नहीं

धन से अच्छे अस्पतालों में
कमरा तो लिया जा सकता है
लेकिन स्वास्थ्य नहीं

धन से बाहुबली का पद तो
पाया जा सकता है
लेकिन सम्मान नहीं

धन से अच्छे पकवान तो
ख़रीदे जा सकते है
लेकिन भूख नहीं

धन-दौलत-पैसा
बहुत कुछ हो सकता है
लेकिन सब कुछ नहीं

हर इन्सान के पाँव के नीचे
जमीन और सिर के ऊपर
आसमान होता है

एक दिन सभी को
दो गज कफ़न के साथ
खाली हाथ जाना पड़ता है।




यह कविता  कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

No comments:

Post a Comment