इंसान को बहुत कुछ
नहीं चाहिए जीने के लिये
अगर मिल जाये अपनों का
थोड़ा सा प्यार
लेकिन प्यार की जगह मिले
घावों से डबडबा जाती है आँखें
और धूमिल हो जाती है
सभी आकाक्षाएँ
वक्त के साथ भले ही
धूमिल पड़ जाए यादें
फिर भी मन को
कचोटती रहती है बातें
अपनो से सुनी बातों का
दुःख तो जरुर होता है
लेकिन जो होता है वो
अच्छे के लिए ही होता है
नहीं चाहिए जीने के लिये
अगर मिल जाये अपनों का
थोड़ा सा प्यार
लेकिन प्यार की जगह मिले
घावों से डबडबा जाती है आँखें
और धूमिल हो जाती है
सभी आकाक्षाएँ
वक्त के साथ भले ही
धूमिल पड़ जाए यादें
फिर भी मन को
कचोटती रहती है बातें
अपनो से सुनी बातों का
दुःख तो जरुर होता है
लेकिन जो होता है वो
अच्छे के लिए ही होता है
कुछ चोटों के निशान
रहे तो उन्हें देख कर
संभल कर चलना तो
आ ही जाता है।
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गयी है )
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