इश्वर सबका मालिक है
इसी भाव से जीना है
इसी भाव से जीना है
हरिमय जीवन सबका हो
ऐसा सत्संग करना है।
आपस में सब भाई-भाई
ऐसे मिल कर रहना है
ओणम,क्रिसमस, ईद,दिवाली
मिल कर साथ मनाना है।
मानवता हो धर्म सभी का
शील -विनय से रहना है
भेद-भाव से ऊपर उठकर
सब को गले लगाना है।
राग द्वेष का तिमिर हटा कर
प्रेम की ज्योति जलाना है
मिले धूप हर आँगन को
अब ऐसा सूरज लाना है।
भूले राही को राह दिखा कर
मंजिल तक पहुँचाना है
सभी सुखी और स्वस्थ रहें
सभी सुखी और स्वस्थ रहें
ऐसा संसार बनाना है।
कोलकाता
११ नवम्बर, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
उत्तम संदेशात्मक रचना...
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