Saturday, February 9, 2013

कुल कलंकिनी



दो बच्चो की माँ
कमाऊ पति
घर में साधन सुविधा।


पता नहीं क्या देखा
सड़क छाप मजनू में
जो नहीं था पति में।


 कुछ तो देखा ही होगा
या फिर मारी गयी थी
मति उसकी। 


सब कुछ छोड़
चली गयी मजनू के संग
गुल्छरे उड़ाने।


 साथ ले गयी 
सारी संचित पूंजी और 
गहने-कपड़े। 


मोहल्ले में
खबर फ़ैली जितने लोग
उतनी बाते बनी। 


परिवार
और रिश्तेदार करने
लगे सभी थू-थू ।


माँ और भाई
का घर से निकलना
दूभर हो गया । 


सास-ससुर
तो जीते जी मर गए 
नाक कटवादी कलमुहीं ने। 


लेकिन लैला
उड़ गयी मान-मर्यादाओ
 को ताक पर रख कर।


कहते  हैं
प्यार अंधा होता है
वो कुछ नहीं देखता।


मजनू होटलों में 
ऐश करता नोचता रहा
उसके जिस्म को।


लेकिन गिद्ध
पेट भर जाने के बाद
लाश पर नहीं बैठा रहता।


एक दिन
 मजनू उड़ गया 
मासुका सोयी रह गयी।


समाज ने
 नया नाम करण
कर दिया "कुल कलंकिनी"।










 











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