मेरे स्वप्न में आये
और बोले-
सुना है तुम
और बोले-
सुना है तुम
एक नयी रामायण का
अंकन करने जा रहे हो
अंकन करने जा रहे हो
मैंने कहा - हाँ प्रभु !
तुलसीदास जी ने आपके
पात्र के साथ न्याय नहीं किया |
तुलसीदास जी ने आपके
पात्र के साथ न्याय नहीं किया |
राघवेन्द्र बोले -
नहीं- नहीं तुम ऐसा
मत करना
मत करना
मनुष्य का चरित्र होने
के कारण ही महिमा मंडित है
के कारण ही महिमा मंडित है
राम की मानवता को दिखाना
ही इस कथा का सार है
मनुष्य अपने
गुणों से देवता बन सकता है
गुणों से देवता बन सकता है
तुलसी ने यही दर्शाया है
अतः तुम
अतः तुम
नयी रामायण का
अंकन मत करना
मुझे तुलसी
का राम ही रहने
देना।
अंकन मत करना
मुझे तुलसी
का राम ही रहने
देना।
कोलकता
१७ मई, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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