Wednesday, November 29, 2017

अक्सर मैं जब तनहा होता

अक्सर मैं जब तनहा होता, गीत तुम्हारे लिखता हूँ
बैठ कल्पना के पंखों पर, तुमसे मिलता रहता हूँ।

भूल हुई मुझसे जीतनी भी, मैं स्वीकार उन्हें करता हूँ
तुम छोड़ गई मझधार मुझे, यह स्वीकार नहीं करता हूँ। 

तुम तो भूल गई मुझको, पर मैं तो याद सदा करता हूँ
एक बार देखो ऊपर से, कब से तुम्हें निहार रहा हूँ।

नींद नहीं आती है मुझ को,यादों के संग मैं सोता हूँ 
  सपनों की गोदी  में चढ़, तुम से मिलता रहता हूँ।  

हर पल तुम्हारी यादों को, मैं दिल में बसाए  रखता हूँ
जब-जब याद तुम्हारी आती,  मैं गुनगुनाया करता हूँ।

आँखों से अश्रुजल बहता, जब भी तुम पर लिखता हूँ
कैसे लिख दूँ मन की बातें,जो कुछ लिखना चाहता हूँ।  



( यह कविता "कुछ अनकही" में छप गई है )

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