मेरे गाँव में कभी दूध की नदियाँ बहती थी
आज वहाँ शराब की नदियाँ बहती है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है!
मेरे गाँव में कभी निर्विरोध चुनाव होते थे
आज पूरे विरोध के साथ चुनाव होते हैं
मेरे गाँव का विकास हो रहा है
मेरा गाँव कभी भाईचारे की मिशाल होता था
आज भाईचारा नफरत की गंध में खो रहा है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है !
मेरे गाँव के लोग कभी सुख की नींद सोते थे
आज सबकी नींद हराम हो गई है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है !
मेरे गाँव की गोरियाँ कभी चुनरी-लहंगा पहनती थी
आज राधा, सीता, गीता सब जींस पहनती हैं
मेरे गाँव का विकास हो रहा है !
पनघट पर कभी छम-छम पायल बजती थी
आज गांव का पनघट सूना पड़ा है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है !
गुवाड़ में कभी कुस्ती और मुकदर के खेल होते थे
आज वहां सियासत के अखाड़े जमते हैं
मेरे गांव का विकास हो रहा हैं !
कोलकत्ता
१२ सितम्बर, २००९
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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