मुर्गी बोली
सुनो प्रिये
बर्ड फ्लू
आ गया है
इंसान अब
हमें नही
खायेगा
अब हम
थोड़े नहीं
बहुत साल
आराम से जियेंगे
मुर्गा बोला
तुम भूल रही हो
तुम जानवरों के नहीं
इन्सान के पल्ले
पड़ी हो
अरे !
इन्सान तो
अपनों को भी
नहीं छोड़ते
तुमको क्या छोडेंगे
पहले तो
दस बीस को
मारते थे
अब तो
हजारों को
एक साथ मारेंगे।
कोलकत्ता
९ सितम्बर, २००९
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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