Sunday, July 7, 2013

बळजी (राजस्थानी कविता)

बळजी
साँचो माणस हो
माँ दिशावर गयी जणा
बळजी ने संभळाय'र गयी
आपरो सगळो गैणो-गाँठो
अर हिदायत दीनी  -
बळजी नींग राखिज्ये।

बळजी गैण री पोटळी
थाम तो लीनी
पण रातां री नींद उड़गी
माँ पाछी आई जणा बळजी
गैण री पोटळी पकड़ाय'र बोल्यो-
"सेठाणी जी आज सुख री नींद सोंवुला"।

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बळजी
भळो माणस हो
गाँव मांय सगळा रे
सुख-दुःख मांय आडो आंवतो
आधी रात ने जे कोई बतळा लेंवतो
बळजी पग जुती कोनी घालतो

आराम-बीमार पड्या
बळजी घरां जाय झाड़ो लगावंतो
गाँव रा लोग कैवता बळजी रो
झाड़ो पळै।

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बळजी
स्याणो माणस हो
ब्याव-सावा मांय
ओसर-मोसर मांय
सगळे गाँव री
मिठाई बळजी ही बणावतो

पण मजाळ जे
कदैई बळजी कोई स्यूं
पांच रिपिया भी बणाइरा मांग्या हुवै
कोई देवै तो बळजी राजी
अर कोई नी देवै तो बळजी राजी

बळजी मीनख हो
मीनख कांई
जबर मीनख हो।

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