गँवाई कुवै के
जिवणे पासै हो पीपंळ
अर पीपंळ रे पसवाड़े हो
सती दादी रो देवरो
गांव री लुगायां दैवरो धौकती
गौर-ईशर री जद सवारी
कूवै पर आंवती जणा गाँव री
छोरया-छापरयां पींपळ रै हैठे
भैळी हुय र गीत गांवती
नुवों ब्याव हुयोड़ो जोड़ो
सती दादी रै गठजोड़े री
जात देवण आंवतो जणा
पीपळ री छियां आशीष देवंती
बैसाख रे महीना में
भोरान-भोर गाँव री लुगायाँ
पीपळ सींचण ने आंवती
गट्टा पर बैठ"र कांण्या कैंवती
टाबरिया रमता पीपळ री
छियाँ मांय दड़ी र गेडियो
लगाता लंम्बा-लंबा टौरा
जेठ-असाढ री गरमी रे मायं
पीपऴ रे निचे हुवंती
नारा-गाड्या री दौड़ अर
देखतो पुरो गाँव गौर के
मगरीया मांय
पण आज गँवाई कुवै रे पासै
कौनी रियो पीपंळ
पण जाका देख्यो ही कौनी पीपंळ
बाने कियां याद आवैगी ऐ बातां
आशीष रै ओळावै
पींपळ देग्यौ आपरी
समूची ऊमर गाँव नै अर
छोड़ग्यो मीठी-मीठी बातां।
[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
जिवणे पासै हो पीपंळ
अर पीपंळ रे पसवाड़े हो
सती दादी रो देवरो
गांव री लुगायां दैवरो धौकती
गौर-ईशर री जद सवारी
कूवै पर आंवती जणा गाँव री
छोरया-छापरयां पींपळ रै हैठे
भैळी हुय र गीत गांवती
नुवों ब्याव हुयोड़ो जोड़ो
सती दादी रै गठजोड़े री
जात देवण आंवतो जणा
पीपळ री छियां आशीष देवंती
बैसाख रे महीना में
भोरान-भोर गाँव री लुगायाँ
पीपळ सींचण ने आंवती
गट्टा पर बैठ"र कांण्या कैंवती
टाबरिया रमता पीपळ री
छियाँ मांय दड़ी र गेडियो
लगाता लंम्बा-लंबा टौरा
जेठ-असाढ री गरमी रे मायं
पीपऴ रे निचे हुवंती
नारा-गाड्या री दौड़ अर
देखतो पुरो गाँव गौर के
मगरीया मांय
पण आज गँवाई कुवै रे पासै
कौनी रियो पीपंळ
पण जाका देख्यो ही कौनी पीपंळ
बाने कियां याद आवैगी ऐ बातां
आशीष रै ओळावै
पींपळ देग्यौ आपरी
समूची ऊमर गाँव नै अर
छोड़ग्यो मीठी-मीठी बातां।
[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
No comments:
Post a Comment