Tuesday, July 16, 2013

गाँव रो पीपळ (राजस्थानी कविता )

गँवाई कुवै के
जिवणे पासै हो पीपंळ
अर पीपंळ रे पसवाड़े हो
सती दादी रो देवरो
गांव री लुगायां दैवरो धौकती


गौर-ईशर री जद सवारी
कूवै पर आंवती जणा गाँव री
छोरया-छापरयां पींपळ रै हैठे
भैळी  हुय र गीत गांवती


नुवों ब्याव हुयोड़ो जोड़ो
सती दादी रै गठजोड़े री
जात देवण आंवतो जणा
पीपळ री छियां आशीष देवंती


बैसाख रे महीना में
भोरान-भोर गाँव री लुगायाँ
पीपळ सींचण ने आंवती
गट्टा पर बैठ"र कांण्या कैंवती


टाबरिया रमता पीपळ री
छियाँ मांय दड़ी र गेडियो
लगाता लंम्बा-लंबा टौरा
जेठ-असाढ री गरमी रे मायं


पीपऴ रे  निचे हुवंती
नारा-गाड्या री दौड़ अर
देखतो पुरो गाँव गौर के
मगरीया मांय

पण आज गँवाई कुवै रे पासै
कौनी रियो पीपंळ
पण जाका देख्यो ही कौनी पीपंळ
बाने कियां याद आवैगी ऐ बातां

आशीष रै ओळावै
पींपळ देग्यौ आपरी
समूची ऊमर गाँव नै अर
छोड़ग्यो मीठी-मीठी बातां।


[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]



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