रोज सुबह
अपने चहरे को
समाचार पत्र से
ढक लेता है बुड्ढ़ा
कईं बार पन्नों को
उलट-पुलट कर
एक-एक अक्षर को
पढ़ता है बुड्ढ़ा
सोने से पहले
रख देता है समेट कर
महीने के आखिर में कब्बाडी को
बेचने के लिए बुड्ढ़ा
रात को करवटे बदलता हुवा
इन्तजार करता है
नयी सुबह के नये समाचार पत्र का
फिर से बुड्ढ़ा।
अपने चहरे को
समाचार पत्र से
ढक लेता है बुड्ढ़ा
कईं बार पन्नों को
उलट-पुलट कर
एक-एक अक्षर को
पढ़ता है बुड्ढ़ा
सोने से पहले
रख देता है समेट कर
महीने के आखिर में कब्बाडी को
बेचने के लिए बुड्ढ़ा
रात को करवटे बदलता हुवा
इन्तजार करता है
नयी सुबह के नये समाचार पत्र का
फिर से बुड्ढ़ा।
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